नई दिल्ली, 2 सितंबर 2024 - दिल्ली परिवहन निगम (डीटीसी) के ड्राइवर और कंडक्टर, जो शहर की जीवनरेखा मानी जाने वाली बसों को चलाते हैं, पिछले पांच महीनों से वेतन न मिलने और असमान वेतनमान को लेकर नाराज हैं। ये कर्मचारी सरकार से समान काम के लिए समान वेतन की मांग कर रहे हैं, साथ ही अपने काम के प्रति सम्मान और सुरक्षा की उम्मीद कर रहे हैं।
डीटीसी में काम करने वाले एक ड्राइवर ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, "हम प्रति दिन ₹800 कमाते हैं, जिसमें से ईपीएफ और पीएफ भी काट लिया जाता है। इसके बावजूद, पिछले पांच महीनों से हमें वेतन नहीं मिला है। त्योहारों पर भी हमें कोई अवकाश नहीं मिलता, और छुट्टी लेने पर वेतन से कटौती की जाती है। यह स्थिति हमारे लिए बहुत कठिन है।"
इस ड्राइवर ने अपनी कठिनाइयों का जिक्र करते हुए कहा कि उन्हें न केवल आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ रहा है, बल्कि मानसिक तनाव भी झेलना पड़ रहा है। “हमारे पास कोई विकल्प नहीं बचा है। न ही कोई स्थायी नौकरी है, न ही वेतन की गारंटी। हमें हर साल कॉन्ट्रैक्ट रिन्यू करना पड़ता है, जो भी काफी अनिश्चित होता है। अगर नौकरी पक्की नहीं की जाती है, तो हमारे लिए अपने बच्चों की पढ़ाई और परिवार का भरण-पोषण करना बहुत मुश्किल हो जाएगा।”
कुछ दिनों पहले दिल्ली में एक सुखद बस यात्रा के अनुभव के साथ DTC कर्मचारियों से संवाद कर उनके दिनचर्या और समस्याओं की जानकारी ली।
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) September 2, 2024
न सामाजिक सुरक्षा, न स्थिर आय और न की स्थाई नौकरी - Contractual मजदूरी ने एक बड़ी ज़िम्मेदारी के काम को मजबूरी के मुकाम पर पहुंचा दिया है।
जहां… pic.twitter.com/X4qFXcUKKI
कर्मचारियों का कहना है कि वर्तमान सरकार उनके मुद्दों को हल करने में विफल रही है। "जब शीला दीक्षित जी मुख्यमंत्री थीं, तब हमारे लिए स्थायी नौकरी की उम्मीद थी। उनके बाद से अब तक कोई सुनवाई नहीं हुई। नागरिकता पक्की है, तो नौकरी कच्ची क्यों? निजीकरण के इस दौर में हमारी नौकरियां असुरक्षित हो गई हैं। हम चाहते हैं कि सरकार समान काम के लिए समान वेतन की नीति लागू करे, ताकि हम अपनी और अपने बच्चों की सुरक्षा कर सकें," एक अन्य कर्मचारी ने कहा।
इस बीच, डीटीसी के होमगार्ड्स भी गंभीर समस्याओं का सामना कर रहे हैं। पिछले छह महीनों से वेतन न मिलने के कारण 24 होमगार्ड्स ने हार्ट अटैक या डिप्रेशन के चलते अपनी जान गंवाई है। “हमारे साथ ऐसा व्यवहार किया जा रहा है जैसे हम इंसान नहीं हैं। हमें हर छह महीने के लिए स्टैंडबाय पर रखा जाता है, जबकि हम पूरी तरह से प्रशिक्षित और अनुभव प्राप्त कर चुके हैं। अब हमारी उम्र 50 से ऊपर हो चुकी है। इस उम्र में हमें न तो कोई और नौकरी मिलेगी, न ही हमारी सुरक्षा का कोई इंतजाम है,” एक होमगार्ड ने दुखी मन से बताया।
ड्राइवरों और कंडक्टरों का मानना है कि सरकार का ध्यान निजीकरण और बड़े उद्योगपतियों को फायदा पहुंचाने पर है, जबकि आम जनता की समस्याएं अनसुनी रह रही हैं। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार के शासनकाल में स्थिति इतनी खराब हो गई है कि पढ़े-लिखे लोग भी अब मजदूरों से कम वेतन पाने पर मजबूर हैं।
डीटीसी कर्मचारियों ने सरकार से अपील की है कि उनकी समस्याओं को गंभीरता से लिया जाए और उनके लिए स्थायी नौकरी, समान वेतन और बेहतर कामकाजी परिस्थितियों की व्यवस्था की जाए। उन्होंने कहा, “हम केवल अपने और अपने परिवार के लिए एक सुरक्षित भविष्य चाहते हैं। अगर हमारी मांगों को नहीं सुना गया, तो हम अपने हक के लिए संघर्ष जारी रखेंगे।”