रुद्रप्रयाग, उत्तराखंड – राज्य के रुद्रप्रयाग जिले के शेरसी और गौरीकुंड गांवों में हाल ही में लगाए गए चेतावनी बोर्ड ने स्थानीय और राष्ट्रीय स्तर पर विवाद को जन्म दे दिया है। इन बोर्डों पर गैर-हिंदू, रोहिंग्या और मुस्लिम समुदायों के फेरीवालों के गांव में प्रवेश और व्यापार करने पर पाबंदी लगाई गई है। बोर्ड में साफ चेतावनी दी गई है कि यदि इन नियमों का उल्लंघन किया गया तो कानूनी कार्रवाई की जाएगी।
स्थानीय ग्रामीणों द्वारा लगाए गए इन बोर्डों पर लिखा गया है, "गांव में गैर हिंदू, रोहिंग्या, मुसलमान फेरीवालों का आना और व्यापार करना मना है। पकड़े जाने पर होगी कार्यवाही।" इस कदम से गांव के बाहर आने-जाने वालों के बीच भय और असमंजस की स्थिति उत्पन्न हो गई है।
गांव में गैर हिन्दू, रोहंगिया,मुस्लिमों का आना मना है,पकड़े गए होगी कार्यवाही लगा बोर्ड,
— Anuj Tyagi (@AnujTyagi8171) September 8, 2024
उत्तराखंड,रुद्रप्रयाग के गांव शेरसी व गौरीकुंड में स्थानीय लोगो ने लगाया गांव के बाहर चेतावनी का बोर्ड गैर हिंदू, रोहंगिया, मुसलमान फेरी वालों का गांव में व्यापार करना घूमना मना है।। pic.twitter.com/xcCHuXpRW8
शेरसी और गौरीकुंड के कई निवासियों का कहना है कि यह कदम सुरक्षा कारणों से उठाया गया है। उनका दावा है कि हाल के दिनों में बाहरी लोगों की संख्या में वृद्धि के कारण गांव में सुरक्षा संबंधी चिंताएं बढ़ी हैं, और यह निर्णय उन्हीं चिंताओं को ध्यान में रखते हुए लिया गया है। कुछ ग्रामीणों का यह भी कहना है कि इस फैसले का मकसद बाहरी फेरीवालों और अन्य समुदायों से जुड़े अपराधों को रोकना है।
हालांकि, इस बोर्ड ने कानूनी विशेषज्ञों और सामाजिक संगठनों के बीच तीखी आलोचना का सामना किया है। कई लोगों ने इसे भारतीय संविधान के खिलाफ बताते हुए इसे धार्मिक भेदभाव का उदाहरण बताया है। संविधान के अनुच्छेद 15 और 19 के तहत किसी भी नागरिक के साथ धर्म, जाति, या स्थान के आधार पर भेदभाव करना अवैध है, और सभी नागरिकों को देश में स्वतंत्र रूप से घूमने और व्यापार करने का अधिकार है।
इस कदम के खिलाफ विभिन्न सामाजिक और मानवाधिकार संगठनों ने भी आवाज उठाई है। वे इस तरह के कदमों को भारत की विविधता और एकता के खिलाफ मानते हैं। उनके अनुसार, इस प्रकार के बोर्ड सामाजिक समरसता और आपसी भाईचारे को नुकसान पहुंचाते हैं।
शेरसी और गौरीकुंड में लगाए गए इस चेतावनी बोर्ड ने धार्मिक और सांस्कृतिक सौहार्द्र पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। अब देखना होगा कि प्रशासन इस मामले में क्या कदम उठाता है और किस प्रकार से यह सुनिश्चित करता है कि देश के सभी नागरिकों के अधिकारों की रक्षा हो।