नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने आज दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को जमानत देते हुए महत्वपूर्ण टिप्पणी की कि "CBI को पिंजरे में बंद तोते की छवि से बाहर आना होगा और दिखाना होगा कि अब वह पिंजरे में बंद तोता नहीं रहा।" सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस भुइयां ने यह टिप्पणी करते हुए कहा कि जांच एजेंसियों की स्वतंत्रता का हनन नहीं होना चाहिए और उन्हें सरकार के इशारे पर काम करने से बचना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला उस वक्त आया है जब अरविंद केजरीवाल पर केंद्र सरकार द्वारा राजनीतिक दबाव के तहत जांच एजेंसियों का दुरुपयोग करने के आरोप लगे थे। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जांच एजेंसियों का उद्देश्य सत्य की खोज होना चाहिए, न कि किसी राजनीतिक दल के इशारों पर काम करना।
'CBI को पिंजरे में बंद तोते की छवि से बाहर आना होगा। दिखाना होगा कि अब वह पिंजरे में बंद तोता नहीं रहा'
— Sachin Gupta (@SachinGuptaUP) September 13, 2024
अरविंद केजरीवाल को जमानत देते हुए सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस भुइयां ने ये टिप्पणी की। pic.twitter.com/jyhfaKKHVE
केंद्र पर कड़ा प्रहार
इस फैसले के बाद आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल के समर्थकों के बीच खुशी की लहर दौड़ गई। आम आदमी पार्टी के प्रवक्ताओं ने इस फैसले को भाजपा के मुंह पर "कड़ा तमाचा" बताया और कहा कि सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय देश के लोकतांत्रिक मूल्यों और संविधान की रक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। उन्होंने कहा कि "यह फैसला केंद्र की भाजपा सरकार द्वारा जांच एजेंसियों के दुरुपयोग के खिलाफ एक बड़ा संदेश है।"
कोर्ट के इस फैसले से यह संदेश साफ़ हो गया है कि किसी भी तरह की तानाशाही को देश का संविधान बर्दाश्त नहीं करेगा। फैसले में कहा गया है कि अगर किसी सरकार ने लोकतांत्रिक मूल्यों का उल्लंघन करने की कोशिश की, तो संविधान हमेशा आम आदमी की रक्षा के लिए खड़ा रहेगा।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद देशभर में राजनीतिक हलकों में चर्चाएं तेज हो गई हैं और केंद्र सरकार पर दबाव बढ़ रहा है कि वह जांच एजेंसियों की स्वायत्तता और निष्पक्षता सुनिश्चित करे।
इस फैसले के बाद यह सवाल भी उठ रहा है कि क्या यह निर्णय जांच एजेंसियों की कार्यशैली और उनकी स्वायत्तता को लेकर कोई बड़े बदलाव का संकेत है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में साफ कहा है कि जांच एजेंसियों को सरकार के इशारों पर काम करने से बचना होगा और उन्हें स्वतंत्र रूप से कार्य करना होगा।
आम जनता और राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह फैसला देश के लोकतांत्रिक ढांचे के लिए एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हो सकता है, जिससे सरकार और जांच एजेंसियों के बीच संतुलन बना रहेगा।