मेरठ, 14 सितंबर 2024 – चिकित्सा शिक्षा और प्रशिक्षण महानिदेशालय (DGME) द्वारा मेरठ के एक अल्पसंख्यक मेडिकल कॉलेज में 17 छात्रों के फर्जी अल्पसंख्यक प्रमाण पत्र के आधार पर MBBS में दाखिला लेने का खुलासा हुआ है। इस घोटाले के उजागर होने के बाद पूरे प्रदेश में हड़कंप मच गया है। DGME ने प्रदेश के सभी अल्पसंख्यक मेडिकल कॉलेजों में पहले चरण की काउंसिलिंग के दौरान हुए दाखिलों की जांच शुरू कर दी है।
सूत्रों के अनुसार, मेरठ स्थित एक मेडिकल कॉलेज में 17 छात्रों ने फर्जी अल्पसंख्यक प्रमाण पत्र लगाकर दाखिला ले लिया था। यह मामला तब सामने आया जब प्रमाण पत्रों की गहन जांच की गई। सभी छात्रों ने 5 सितंबर तक दाखिला ले लिया था।
जांच की प्रक्रिया
DGME ने अब सभी संबंधित मेडिकल कॉलेजों के दाखिले की समीक्षा शुरू कर दी है, जिसमें प्रमाण पत्रों की दोबारा जांच की जा रही है। यदि किसी छात्र का प्रमाण पत्र फर्जी पाया गया, तो उनका दाखिला तुरंत रद्द कर दिया जाएगा। इसके अलावा, फर्जीवाड़ा करने वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई भी की जाएगी।
DGME ने इस मामले की जानकारी गृह विभाग और अल्पसंख्यक विभाग को भी दे दी है, और फर्जी प्रमाण पत्र जारी करने वाले अधिकारियों की मिलीभगत की भी जांच की जा रही है। कई अधिकारी इस मामले में संलिप्त पाए जा सकते हैं, क्योंकि न केवल दाखिले में धांधली हुई है, बल्कि प्रमाण पत्र जारी करने में भी गड़बड़ी की गई है।
प्रमाण पत्रों की सत्यापन प्रक्रिया पर सवाल
इस घटना के बाद नोडल सेंटर्स की कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठने लगे हैं। राज्यभर में 20 नोडल सेंटर्स बनाए गए थे, जहां पांच से दस सदस्यीय टीमों द्वारा प्रमाण पत्रों का सत्यापन किया जा रहा था। हालांकि, प्रमाण पत्र सत्यापन के दौरान कई सेंटर्स पर छात्रों ने प्रक्रिया को लेकर हंगामा भी किया था। इस मामले के उजागर होने के बाद अन्य प्रमाण पत्रों के सत्यापन पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं।
अल्पसंख्यक मेडिकल कॉलेजों की सूची
इस घोटाले में शामिल कॉलेजों में मेरठ का सुभारती मेडिकल कॉलेज, लखनऊ के एरा मेडिकल कॉलेज, कैरियर मेडिकल कॉलेज, इंटीग्रल मेडिकल कॉलेज, आगरा का एफएच मेडिकल कॉलेज, और मुरादाबाद का तीर्थंकर मेडिकल कॉलेज प्रमुख हैं। इन अल्पसंख्यक कॉलेजों में MBBS की कुल 475 सीटें हैं।
DGME के महानिदेशक किंजल सिंह ने कहा है कि जिन छात्रों के प्रमाण पत्र फर्जी पाए जाएंगे, उनके दाखिले रद्द कर दिए जाएंगे और उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी। इसके अलावा, अल्पसंख्यक प्रमाण पत्रों के सत्यापन की प्रक्रिया को और सख्त किया जाएगा ताकि भविष्य में इस तरह की गड़बड़ियों से बचा जा सके।
यह मामला राज्य में चिकित्सा शिक्षा की पारदर्शिता और प्रमाण पत्रों की जांच प्रक्रिया पर एक बड़ा सवालिया निशान खड़ा करता है। अब देखना यह है कि जांच के बाद कितने और फर्जी मामलों का खुलासा होता है और क्या दोषियों को सख्त सजा मिलती है।