हरियाणा के राजनीतिक इतिहास में एक असाधारण घटना ने सभी का ध्यान खींचा है। यह शायद पहली बार हुआ है कि राज्य की सत्ता में किसी भी वाल्मीकि नेता को मंत्री बनने का अवसर नहीं मिला। 2019 से 2024 के बीच इस स्थिति के लिए भारतीय जनता पार्टी (BJP) को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है, जिसने वाल्मीकि समाज को प्रतिनिधित्व देने में उपेक्षा बरती है।
चुनाव से ठीक कुछ महीने पहले, बीजेपी ने समाज को शांत करने के उद्देश्य से बिशंबर वाल्मीकि को मंत्री पद दिया, लेकिन आचार संहिता लागू होने के चलते उन्हें कोई वास्तविक सत्ता या काम करने का मौका नहीं मिला। वाल्मीकि समाज के नेताओं ने इसे मात्र एक चुनावी रणनीति करार दिया, जिसमें उन्हें दिखावे के तौर पर मंत्री पद तो दिया गया, लेकिन असल में किसी प्रकार की जिम्मेदारी या शक्ति से वंचित रखा गया।
समस्या यहीं नहीं रुकी। बवानी खेड़ा सीट, जो कि वाल्मीकि समाज के लिए एक महत्वपूर्ण सीट मानी जाती है, पर भी बीजेपी ने बड़ा झटका दिया। पार्टी ने बिशंबर वाल्मीकि से टिकट छीनकर हाल ही में JJP (जननायक जनता पार्टी) से आए नेता को दे दिया। इससे बीजेपी के पुराने और समर्पित वाल्मीकि नेता बिशंबर वाल्मीकि आहत हो गए, और भावुक होकर अपने कार्यकर्ताओं से गले लगकर रो पड़े।
हरियाणा के इतिहास में शायद पहली बार हुआ है कि सरकार में किसी भी वाल्मीकि नेता को मंत्री नहीं बनाया गया। 2019 से 2024 तक यह पाप करने वाली पार्टी BJP है।
— Mahender Singh (@MahenderTweets) September 5, 2024
समाज को झुंझुना पकड़ाते हुए बीजेपी ने चुनाव से चंद महीने पहले बिसंबर वाल्मीकि को मंत्री बना दिया। लेकिन आचार सहिंता के बीच… https://t.co/MRVe5EgpIa
यह घटना वाल्मीकि समाज के लिए एक बड़ा आघात है, जो पहले से ही अपनी उपेक्षा के चलते नाराज था। बिशंबर वाल्मीकि के समर्थकों में भी गुस्सा साफ देखा जा सकता है, और वे इसे बीजेपी का बड़ा राजनीतिक धोखा मान रहे हैं।
इस घटनाक्रम के बाद वाल्मीकि समाज में बीजेपी के प्रति गुस्सा और नाराजगी तेजी से बढ़ रही है। समाज के कई लोग खुलकर कह रहे हैं कि बीजेपी ने उनका राजनीतिक अपमान किया है और इसका जवाब आने वाले चुनावों में दिया जाएगा।
वाल्मीकि समाज के एक वरिष्ठ सदस्य ने कहा, "यह बीजेपी का चुनावी ड्रामा है। पहले मंत्री बनाकर हमें झूठी तसल्ली दी और फिर सबसे महत्वपूर्ण समय पर हमें किनारे कर दिया। अब हम इस अपमान का बदला जरूर लेंगे।"
हरियाणा की राजनीति में वाल्मीकि समाज का यह आक्रोश आने वाले चुनावों पर असर डाल सकता है। बीजेपी की रणनीति पर सवाल खड़े हो रहे हैं कि क्या पार्टी अपने समर्पित नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ सही व्यवहार कर रही है या नहीं। बवानी खेड़ा जैसी महत्वपूर्ण सीट पर इस प्रकार का निर्णय बीजेपी के लिए भारी पड़ सकता है, खासकर जब समाज का एक बड़ा तबका उनसे नाराज हो चुका है।
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि वाल्मीकि समाज के साथ हुए इस घटनाक्रम का आगामी चुनावों में क्या प्रभाव पड़ता है और बीजेपी किस तरह से इस नाराजगी को शांत करने का प्रयास करती है।