1950 के बाद तुर्क, मुग़ल और अफगान बने भारतीय नागरिक: वक्फ को दी गई जमीन अब भूमिहीन भारतीयों का हक: दिलीप मंडल

1950 के बाद तुर्क, मुग़ल और अफगान बने भारतीय नागरिक: वक्फ को दी गई जमीन अब भूमिहीन भारतीयों का हक: दिलीप मंडल

नई दिल्ली, 14 सितंबर 2024: सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म X (पूर्व में ट्विटर) पर प्रोफेसर दिलीप मंडल के एक हालिया पोस्ट ने राजनीतिक और सामाजिक हलकों में चर्चा छेड़ दी है। अपने बयान में प्रोफेसर मंडल ने ऐतिहासिक संदर्भों के साथ एक महत्वपूर्ण सवाल उठाया। उन्होंने लिखा, "तुर्क, मुग़ल, अफगान, जो भारत में रह गए, वे 1950 में संविधान लागू होने के बाद से भारतीय नागरिक हैं। पर वे वहाँ से माथे पर लादकर जमीन लाए नहीं थे।"

मंडल का यह बयान भारतीय इतिहास में मध्यकालीन विदेशी शासकों और उनके उत्तराधिकारियों के भारत में नागरिक अधिकारों और भूमि पर दावे को संदर्भित करता है। उन्होंने आगे कहा कि पाकिस्तान जाते समय या जमींदारी उन्मूलन कानून से बचने के लिए जो जमीन वक्फ (धार्मिक संस्थानों को) दी गई थी, वह हर भूमिहीन भारतीय नागरिक की संपत्ति होनी चाहिए।

मंडल के इस बयान ने विशेष रूप से उस समय के ज़मींदारों द्वारा संपत्ति के हस्तांतरण पर सवाल उठाया, जो कि जमींदारी उन्मूलन कानून से प्रभावित हुए थे। आज़ादी के बाद भारत में भूमि सुधार और ज़मींदारी प्रथा को समाप्त करने के लिए कई कानून लाए गए थे, जिनका उद्देश्य सामंती व्यवस्था को खत्म कर भूमिहीन किसानों और मजदूरों को उनकी जमीन का हक दिलाना था।

वक्फ संपत्तियों का जिक्र करते हुए, मंडल ने इस पर जोर दिया कि जो जमीन इन शासकों या ज़मींदारों द्वारा धार्मिक संस्थानों को दी गई थी, वह संपत्ति सिर्फ एक खास वर्ग की नहीं होनी चाहिए, बल्कि उसे हर भारतीय भूमिहीन के अधिकार में माना जाना चाहिए। उनका कहना है कि वक्फ द्वारा दी गई जमीन सार्वजनिक संसाधन है और इसे भारतीय संविधान के मूल्यों के तहत सभी को बांटा जाना चाहिए।

प्रोफेसर मंडल के इस बयान पर कई प्रतिक्रियाएँ आईं। कुछ लोगों ने इसे ऐतिहासिक तथ्यों और भूमि सुधार के संदर्भ में सही ठहराया, जबकि अन्य ने इसे एक विभाजनकारी बयान करार दिया। सोशल मीडिया पर बहस छिड़ गई कि वक्फ संपत्ति और भूमि सुधार पर इस प्रकार की नई सोच किस हद तक न्यायसंगत है।

कई विशेषज्ञों ने भी मंडल के बयान की व्याख्या की, यह बताते हुए कि भारतीय संविधान सभी नागरिकों के लिए बराबरी के अधिकार की बात करता है। हालांकि, भूमि सुधार और वक्फ संपत्तियों के प्रश्नों पर व्यावहारिक और कानूनी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए बहस होनी चाहिए। 

प्रोफेसर दिलीप मंडल द्वारा उठाया गया यह मुद्दा भारत के जमींदारी उन्मूलन, भूमि सुधार, और वक्फ संपत्ति पर बहस को पुनर्जीवित करने की क्षमता रखता है। यह सवाल उठता है कि क्या आज भी इन विषयों पर नए दृष्टिकोण से सोचने की जरूरत है, और क्या भूमिहीन भारतीयों के अधिकारों को और मजबूत करने के लिए कोई नया समाधान निकाला जा सकता है। 

फिलहाल, इस बहस का भविष्य क्या होगा, यह तो समय ही बताएगा, लेकिन मंडल के इस बयान ने भारत की ऐतिहासिक और वर्तमान सामाजिक व्यवस्थाओं पर विचार करने के लिए एक नया मंच जरूर प्रदान कर दिया है।

Rangin Duniya

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