19वीं सदी में, जब जाति व्यवस्था महिलाओं के प्रति अत्यंत दमनकारी थी, केरल के त्रावणकोर में निम्न जाति नायर की महिलाओं को भद्देपन का सामना करना पड़ता था। उन्हें कमर से ऊपर अपने शरीर को ढकने का अधिकार नहीं था, और यदि वे ऐसा करती थीं, तो उन पर "ब्रेस्ट टैक्स" (Mulakkaram) लगाया जाता था। यह टैक्स न केवल अपमानजनक था, बल्कि स्तन के आकार के आधार पर भिन्न होता था—जितना बड़ा स्तन, उतना अधिक टैक्स।
इस अपमानजनक प्रथा के खिलाफ एक साहसी महिला, नांगेली, ने आवाज उठाई। नांगेली, जो दलित एझावा समुदाय से थीं, अपने पति के साथ चेरथला में रहती थीं और खेतों में काम करती थीं। उन्होंने महसूस किया कि उनके समुदाय के साथ अन्याय हो रहा है, और टैक्स के बोझ के कारण उनके पास खाने के लिए मुश्किल से कुछ चावल ही बचते थे।
नांगेली ने अपने पति से चर्चा की और निर्णय लिया कि अब चुप रहना उचित नहीं है। उन्होंने अपने स्तन को ढकने का निर्णय लिया, जो उस समय सामंती समाज के पुरुषों के लिए एक अपमान था। जब अधिकारियों ने एक महीने बाद उनके घर पर आकर टैक्स मांगा, तो नांगेली ने एक अत्यंत साहसिक कदम उठाया—उन्होंने अपने स्तन काटकर टैक्स अधिकारियों को दिखाए। यह दृश्य देखकर अधिकारी घबरा गए और भाग गए।
हालांकि, नांगेली की इस साहसिकता के कुछ समय बाद उनकी मृत्यु हो गई, लेकिन उनके बलिदान ने अन्य महिलाओं को प्रेरित किया। 26 जुलाई 1859 को, राजा ने एक आदेश जारी किया जिसमें महिलाओं के ऊपरी वस्त्र पहनने के कानून को बदल दिया गया। नांगेली के इस साहसिक कदम ने उन्हें न केवल अधिकार दिलाया, बल्कि महिलाओं के लिए एक नई आशा की किरण भी बन गई।
यह एक विचित्र सत्य है कि केरल जैसे प्रगतिशील राज्य में महिलाओं को अंगवस्त्र पहनने के अधिकार के लिए 50 साल का संघर्ष करना पड़ा। नांगेली ने अपने शरीर की शक्ति के खिलाफ समाज की शक्तिहीन सोच को चुनौती दी। उनके बलिदान ने दिखाया कि किसी सामाजिक विकृति के खिलाफ जागरूकता के लिए कभी-कभी एक व्यक्ति को अपने प्राणों की कीमत चुकानी पड़ती है।
क्या यह सही है? यह सवाल आज भी हमारे सामने है, और नांगेली की कहानी इस सवाल का एक महत्वपूर्ण उत्तर देती है। उनकी साहसिकता ने न केवल उनके समय की महिलाओं को प्रेरित किया, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को भी दिखाया कि न्याय के लिए लड़ाई कभी खत्म नहीं होती।