जम्मू के कटरा में स्थित माता वैष्णो देवी का मंदिर हिन्दू धर्म के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है। यह मंदिर आदि शक्ति के स्वरूप 'माता वैष्णो देवी' को समर्पित है। उत्तर भारत में कई पौराणिक मंदिर हैं, लेकिन मां वैष्णो के इस मंदिर की महिमा विशेष रूप से प्रसिद्ध है। हर साल करोड़ों श्रद्धालु कटरा की ऊँची पहाड़ी पर बने इस मंदिर के दर्शन करने आते हैं। चैत्र और शारदीय नवरात्रि के समय यहाँ भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है।
यहाँ पहुंचने वाले श्रद्धालु 'जय माता दी' के जयकारों के साथ माता के दर्शन के लिए उत्साहपूर्वक आते हैं। माता वैष्णो देवी के इस मंदिर का इतना महत्व क्यों है और इसके पीछे की कहानी क्या है, यह जानने योग्य है।
माता वैष्णो देवी के मंदिर से जुड़ी एक प्रसिद्ध कथा है, जिसमें हंसाली गांव के निवासी और माता के परम भक्त श्रीधर का उल्लेख है। नि:संतान श्रीधर को किसी ने सलाह दी कि वह कुछ कुंवारी कन्याओं की पूजा कर उन्हें भोजन कराए, जिससे संतान सुख प्राप्त होगा। इस पर श्रीधर ने कन्याओं को आमंत्रित किया, जिनमें माता वैष्णो देवी भी कन्या वेश में थीं, हालांकि श्रीधर को इसका आभास नहीं था। श्रीधर ने सभी कन्याओं की पूजा की, परंतु माता वैष्णो देवी ने उसे भंडारे का आयोजन करने का निर्देश दिया।
श्रीधर ने गुरु गोरखनाथ और उनके शिष्य भैरवनाथ को भी भंडारे के लिए बुलाया। भैरवनाथ ने भंडारे में मांस और मदिरा की मांग की, जो वैष्णव परंपरा में स्वीकार्य नहीं था। माता वैष्णो देवी ने समझा कि भैरवनाथ उनके भंडारे को विफल करना चाहता है। तब माता वायु रूप में त्रिकूटा पर्वत की ओर चली गईं, और भैरवनाथ ने उनका पीछा किया। माता ने हनुमानजी से नौ माह तक भैरवनाथ को व्यस्त रखने का अनुरोध किया और अंततः माता ने महाकाली रूप धारण कर भैरवनाथ का वध किया।
देवी ने भैरवनाथ को क्षमा कर दिया और कहा कि जो भी भक्त उनके दर्शन के लिए आएगा, वह भैरवनाथ के दर्शन भी करेगा। इसी मान्यता के तहत भैरवनाथ के मंदिर के दर्शन के बिना वैष्णो देवी यात्रा अधूरी मानी जाती है।
मंदिर के गर्भ गृह में तीन पिंडियों का वास है, जो देवी के तीन रूपों को दर्शाती हैं—मां महासरस्वती, मां महालक्ष्मी, और मां महाकाली। इन पिंडियों के दर्शन करने से भक्तों को ज्ञान, धन और शक्ति की प्राप्ति होती है।