एक लड़की की रुला देने वाली आपबीती: दरिंदे अबू बटाट ने मेरे स्तनों..मेरे माँ और भाई को मार दिया, मेरी बहनो और भतीजी के सात रेप..मुझे इस्लाम अपनाने को मजबूर किया

एक लड़की की रुला देने वाली आपबीती: दरिंदे अबू बटाट ने मेरे स्तनों..मेरे माँ और भाई को मार दिया, मेरी बहनो और भतीजी के सात रेप..मुझे इस्लाम अपनाने को मजबूर किया

मुझे अचानक अपने बाय कंधे पर किसी का हाथ महसूस हुआ मैंने जब आप खोल कर देखा तो सामने अबू बटाट खड़ा था। उसकी हरि आंखें चमक रही थीं और होठों पर तिरछी मुस्कान थी। मेरा चेहरा उसकी पिस्टल के ठीक सामने था। मैं चट्टान की तरह शांत बैठी थी। मैंने फिर से आंखें बंद  कर ली और दुआ मांगने लगी। फिर उसने मेरे कंधे पर हाथ रखा और उसका हाथ मेरी बायी गर्दन से नीचे खिसक कर मेरे स्तन पर रुक गया। मेरे अंदर जैसे आज जल रही थी। मुझे इससे पहले कभी किसी ने इस तरह नहीं छुआ था। मैंने आंखें खोल ली। लेकिन उसकी तरफ देखा तक नहीं मैं सामने देखते रही। अबू बटाट अपना हाथ मेरे कपड़ों के अंदर घुसा दिया और फिर मेरे स्तनों को पकड़ लिया।-नादिया मुराद की आत्मकथा "The Last Girl" का कुछ अंश.

इराक की यजीदी समुदाय से ताल्लुक रखने वाली नादिया मुराद ने अपनी आत्मकथा "The Last Girl" के ज़रिए दुनिया को उस यातना से रूबरू कराया, जिससे वह गुज़रीं। 2014 में आईएसआईएस के आतंकियों द्वारा इराक के कोजो गांव पर हमला हुआ, जिसने नादिया की जिंदगी को हमेशा के लिए बदल दिया। उनकी मां को मारकर गड्ढे में फेंक दिया गया, भाइयों को कत्ल कर दिया गया, और उनकी बहन और भतीजी के साथ बलात्कार किया गया।

नादिया, उस वक़्त सिर्फ 21 साल की थीं। उन्हें और अन्य यजीदी लड़कियों को आईएसआईएस के आतंकियों ने पकड़ लिया। इन लड़कियों को "सबाया" (सेक्स स्लेव) बनाकर बेचा जाता था। ट्रक में ही उनके साथ दुर्व्यवहार शुरू हो गया। आतंकियों ने उनका शारीरिक शोषण किया और उन्हें प्रताड़ित किया। जब नादिया ने विरोध करने की कोशिश की, तो उन पर और भी अत्याचार किए गए। 

आतंकियों ने नादिया को इस्लाम अपनाने के लिए मजबूर किया। जब उन्होंने इंकार किया, तो उन्हें उनके परिवार से मिलने का झांसा देकर धर्म परिवर्तन कराया गया। इसके बाद, उन्हें आईएसआईएस के सदस्य हाजी सलमान को बेचा गया, जिसने बार-बार उनका बलात्कार किया और उन्हें मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया। हाजी सलमान के बाद, नादिया को दूसरे आतंकियों को बेच दिया गया, जहां उन्हें और भी बुरी यातनाओं का सामना करना पड़ा।

एक दिन, नादिया ने साहस जुटाकर भागने का फैसला किया। वह किसी तरह आईएसआईएस के चंगुल से बच निकलीं और जर्मनी पहुंचीं, जहां उन्होंने एक नई जिंदगी शुरू की। 

2018 में, नादिया को उनके साहस और संघर्ष के लिए नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उनकी आत्मकथा दुनिया को उन अमानवीय अत्याचारों की याद दिलाती है, जिनका सामना उन्होंने और अन्य यजीदी लड़कियों ने किया। 

नादिया की कहानी उन हज़ारों लड़कियों और महिलाओं की आवाज़ है, जिन्होंने आईएसआईएस के आतंक के साए में अपनी जिंदगी जी। उनकी पुस्तक "The Last Girl" उन सताई गई आत्माओं का दस्तावेज़ है, जिन्हें न्याय की उम्मीद है। 

नादिया मुराद की कहानी को समझना एक कठिन अनुभव है, लेकिन यह बताती है कि अत्याचारों के खिलाफ आवाज़ उठाना कितना महत्वपूर्ण है।

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