हाल ही में सुमित चौहान द्वारा दिए गए एक बयान ने समाज में व्याप्त भेदभाव और असमानता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। उन्होंने कहा, "सवर्ण की बेटी देश की बेटी होती है लेकिन दलित की बेटी सिर्फ दलित की बेटी होती है।" यह बयान समाज में व्याप्त जातिगत भेदभाव और दलितों के साथ होने वाले अन्याय को उजागर करता है।
सवर्ण और दलित बेटियों के साथ भेदभाव
सुमित चौहान ने अपने बयान में इस बात पर जोर दिया कि जब किसी सवर्ण लड़की के साथ यौन अपराध होता है, तो समाज में बड़ा आंदोलन खड़ा हो जाता है। उदाहरण के तौर पर, निर्भया कांड और कोलकाता के RG कर मेडिकल कॉलेज की घटनाएं सामने आती हैं, जिनमें समाज ने एकजुट होकर आवाज उठाई। लेकिन जब दलित बेटियों के साथ जघन्य वारदात होती है, तो समाज का वही उत्साह और समर्थन देखने को नहीं मिलता।
सवर्ण की बेटी देश की बेटी होती है लेकिन दलित की बेटी सिर्फ दलित की बेटी होती है। जब किसी सवर्ण लड़की के साथ यौन अपराध होता है तो कभी निर्भया जैसा आंदोलन होता है कभी कोलकाता के RGकर मेडिकल कॉलेज जैसा लेकिन दलित बेटियों के साथ चाहे कितनी भी जघन्य वारदात हो जाए, आपको कभी कोई बहुत… pic.twitter.com/uvEGlJeUsH
कर्नाटक का मामला
हाल ही में कर्नाटक के यादगीर जिले में एक नाबालिग दलित बच्ची के साथ कथित ऊंची जाति के बदमाश द्वारा रेप का मामला सामने आया। जब बच्ची के परिवार ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई, तो न केवल परिवार का बल्कि पूरे दलित मोहल्ले का बहिष्कार कर दिया गया। यह घटना समाज में व्याप्त जातिगत भेदभाव और अन्याय की एक और मिसाल है।
दलितों के साथ अन्याय
दलित बेटियों के साथ यौन अपराध की शिकायत करने पर भी उन्हें और उनके परिवार को समाज से बहिष्कृत कर दिया जाता है। यह स्थिति न केवल उनके लिए न्याय की राह को कठिन बनाती है, बल्कि समाज में उनकी स्थिति को और भी कमजोर कर देती है।
सुमित चौहान का बयान समाज में व्याप्त जातिगत भेदभाव और असमानता की ओर ध्यान आकर्षित करता है। यह समय है कि समाज इस भेदभाव को समाप्त करने के लिए एकजुट होकर कदम उठाए और सभी बेटियों को समान सुरक्षा और सम्मान प्रदान करे। दलित बेटियों के साथ होने वाले अन्याय को समाप्त करने के लिए समाज को जागरूक होना होगा और उनके अधिकारों की रक्षा के लिए ठोस कदम उठाने होंगे।