15 साल की मुस्लिम बच्ची ने पढ़े भगवद गीता के श्लोक, मौलवियों ने दे डाली धमकी, कहा इस लड़की ने.....

मेरठ की 15 वर्षीय मुस्लिम छात्रा, आलिया खान, ने हाल ही में एक स्कूल प्रतियोगिता में श्रीकृष्ण के लिबास में भागवत गीता के श्लोक पढ़े, जिसके बाद कुछ मौलवियों ने उसे धमकियां दीं। आलिया के इस कदम पर धार्मिक ठेकेदारों को कड़ी आपत्ति हुई और फतवा जारी करने तक की धमकी दी गई।

आलिया ने न केवल भगवद गीता के श्लोक पढ़े, बल्कि श्रीकृष्ण के वेश में मंच पर प्रस्तुति भी दी। यह देखकर धार्मिक ठेकेदारों ने कहा कि इस्लाम में अभिनय की अनुमति नहीं है, और दूसरे धर्म के प्रतीकों का सम्मान इस्लामी शिक्षाओं के खिलाफ है। मौलवियों का दावा है कि इस्लाम नाच-गाने और अभिनय को नापसंद करता है और यह अल्लाह के कानून के खिलाफ है।

आलिया के इस कदम ने विवाद को जन्म दिया, जिससे कुछ लोग उसे धमकाने लगे। आलिया के अनुसार, उसने ऐसा कोई कार्य नहीं किया जो इस्लाम के विरुद्ध हो। उसने कहा, "चाहे वह गीता हो, गुरु ग्रंथ साहिब, या रामचरितमानस, सभी पवित्र ग्रंथ हमें इंसानियत और एकता का संदेश देते हैं। मैंने श्रीकृष्ण का वेश इसलिए धारण किया क्योंकि यह प्रतियोगिता की मांग थी। धर्म को हमें जोड़ने का काम करना चाहिए, न कि हमें तोड़ने का।"

इस घटना ने सोशल मीडिया पर भी बड़ा विवाद खड़ा किया। अंजना ओम कश्यप की एक डिबेट में भी इस मुद्दे पर चर्चा हुई, जिसमें मौलवियों ने आलिया के इस कदम को इस्लाम के खिलाफ बताया। मौलवी का तर्क था कि "अभिनय और नाच-गाना इस्लाम में हराम है," जबकि आलिया ने इसका जवाब देते हुए कहा, "पवित्र ग्रंथ हमें इंसानियत सिखाते हैं, और मैं केवल एकता और भाईचारे का संदेश दे रही थी।"

यह मामला उस समय और गर्म हो गया जब कई धार्मिक नेताओं ने आलिया के खिलाफ बयान दिए और उसे धार्मिक नियमों का पालन करने की नसीहत दी। लेकिन आलिया ने स्पष्ट रूप से कहा कि उसका मकसद सिर्फ प्रतियोगिता में भाग लेना था और वह किसी की धार्मिक भावनाओं को आहत नहीं करना चाहती थी।

इस घटना ने देश में एक महत्वपूर्ण बहस छेड़ दी है, जिसमें यह सवाल उठाया जा रहा है कि क्या धार्मिक नियमों का पालन करने के नाम पर किसी की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को रोका जा सकता है? वहीं, इस बहस का एक और पक्ष यह भी है कि धार्मिक कट्टरपंथी हमेशा ऐसे मामलों में हस्तक्षेप करके माहौल को खराब करने का काम करते हैं।

आलिया के समर्थन में भी कई लोग सामने आए हैं, जो मानते हैं कि इस तरह की घटनाएं न केवल धार्मिक असहिष्णुता को बढ़ावा देती हैं, बल्कि समाज को भी पीछे धकेलती हैं।

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