झारखंड में एक्साइज कॉन्स्टेबल भर्ती के दौरान हुए हादसे में 12 अभ्यर्थियों की मौत के बाद राज्य की राजनीति गरमा गई है। यह त्रासदी न केवल प्रशासनिक कुप्रबंधन को उजागर करती है, बल्कि हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली सरकार की शासन क्षमता पर गंभीर सवाल खड़े कर रही है। इन घटनाओं से राज्य के युवा और विपक्षी दल नाराज हैं, और यह मुद्दा आगामी विधानसभा चुनावों में सोरेन सरकार के लिए भारी साबित हो सकता है।
भर्ती प्रक्रिया की लापरवाही में बदल गई त्रासदी
22 अगस्त, 2024 को शुरू हुई इस भर्ती अभियान में हजारों युवा भाग ले रहे थे, लेकिन शारीरिक परीक्षण के दौरान 12 उम्मीदवारों की दर्दनाक मौत हो गई। यह मौतें राज्य के विभिन्न जिलों में हुईं, जिनमें पलामू में चार, गिरिडीह और हजारीबाग में दो-दो, और रांची, पूर्वी सिंहभूम, तथा साहिबगंज में एक-एक मौत शामिल है। इसके अलावा 100 से अधिक उम्मीदवार बेहोश हो गए और उन्हें अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। इस हादसे ने राज्य में सरकारी सुरक्षा उपायों की गंभीर खामियों को उजागर किया है।
इस घटना के बाद राज्य के युवाओं में आक्रोश फैल गया है। सरकार की ओर से उम्मीदवारों की सुरक्षा के लिए उचित कदम न उठाए जाने पर कई सवाल उठाए जा रहे हैं। इस भर्ती अभियान में बुनियादी सुरक्षा उपायों की कमी ने न केवल कई युवाओं की जान ले ली, बल्कि हजारों अन्य नौकरी चाहने वालों की उम्मीदों को भी चकनाचूर कर दिया है। प्रशासनिक लापरवाही से राज्य सरकार की छवि को बड़ा धक्का लगा है।
हेमंत सोरेन सरकार की प्रतिक्रिया पर उठ रहे सवाल
इस त्रासदी के बाद सोरेन सरकार की प्रतिक्रिया बेहद निराशाजनक रही है। बजाय इसके कि सरकार स्वास्थ्य जोखिमों का समाधान करती, वह सिर्फ प्रक्रियागत अनुपालन पर ध्यान देती रही। प्रशासन द्वारा किए गए सुरक्षा उपाय, जैसे अत्यधिक गर्मी से बचने के लिए सुबह परीक्षा आयोजित करना और चिकित्सा सहायता प्रदान करना, पूरी तरह से अपर्याप्त साबित हुए हैं। इस घटना के बाद सोरेन सरकार को कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ रहा है, खासकर विपक्षी दल भाजपा से।
भाजपा ने सरकार पर लगाया लापरवाही का आरोप
भाजपा ने इस दुखद घटना को लेकर हेमंत सोरेन की सरकार पर तीखा हमला बोला है। भाजपा नेताओं ने भर्ती अभियान को "मौत की दौड़" करार देते हुए आरोप लगाया है कि राज्य सरकार ने नौकरी चाहने वालों की जान को खतरे में डाल दिया। भाजपा ने मृतकों के परिवारों के लिए मुआवजा और सरकारी नौकरी की मांग की है। इसके अलावा, असम के मुख्यमंत्री और झारखंड विधानसभा चुनाव के सह-प्रभारी हिमंत बिस्वा सरमा ने भी इस घटना को लेकर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) से जांच की मांग की है।
सरमा ने यह भी कहा कि हेमंत सोरेन सरकार को मृत अभ्यर्थियों के परिवारों को 50 लाख रुपये मुआवजा और सरकारी नौकरी देनी चाहिए। उन्होंने यह चेतावनी भी दी कि अगर वर्तमान सरकार ऐसा करने में विफल रहती है, तो भाजपा सत्ता में आने के बाद यह सुनिश्चित करेगी कि पीड़ित परिवारों को न्याय मिले।
आक्रोशित परिवारों की न्याय की मांग
इस हृदयविदारक घटना के बाद पीड़ित परिवारों का दुख और आक्रोश स्वाभाविक है। वे न केवल अपने खोए हुए प्रियजनों के लिए न्याय मांग रहे हैं, बल्कि भविष्य में ऐसी घटनाओं से बचने के लिए सरकार से ठोस कदम उठाने की उम्मीद कर रहे हैं। राज्य के युवाओं में यह भावना प्रबल हो रही है कि सरकार को भर्ती प्रक्रियाओं में अधिक पारदर्शिता और सुरक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए।
राज्य की जनता और पीड़ित परिवार सरकार से स्पष्टीकरण चाहते हैं कि ऐसी त्रासदी क्यों हुई और इसके पीछे क्या कारण थे। वे आश्वासन चाहते हैं कि भविष्य में ऐसी घटनाएं नहीं होंगी। यह घटना सरकार के लिए एक बड़ा अवसर है कि वह अपनी प्रशासनिक विफलताओं को स्वीकार करे और सुधार के लिए ठोस कदम उठाए।
आने वाले चुनावों में हेमंत सोरेन सरकार के लिए चुनौती
इस घटना ने झारखंड में राजनीतिक माहौल को पूरी तरह से बदल दिया है। भाजपा इस मुद्दे को आगामी विधानसभा चुनावों में प्रमुख चुनावी एजेंडा बना रही है। पार्टी इस त्रासदी को राज्य सरकार की नाकामी और कुप्रबंधन के प्रतीक के रूप में पेश कर रही है, जो चुनावी समीकरणों को प्रभावित कर सकता है।
हेमंत सोरेन की सरकार को इस संकट से निपटने के लिए त्वरित और प्रभावी उपाय करने की आवश्यकता है। राज्य की जनता अब यह देख रही है कि सरकार इस घटना के बाद क्या कदम उठाती है। भर्ती प्रक्रिया में सुधार, युवाओं के लिए रोजगार के अवसरों को सुरक्षित करना और जनता के विश्वास को पुनः स्थापित करना सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है।
झारखंड के प्रशासनिक ढांचे में सुधार की आवश्यकता इस त्रासदी ने उजागर कर दी है। भविष्य में ऐसी घटनाओं से बचने के लिए सरकार को तत्काल कदम उठाने होंगे।