वामन मेश्राम ने हाल ही में ट्विटर पर एक वीडियो साझा करते हुए दावा किया कि जाति जनगणना से सबसे ज्यादा नुकसान ब्राह्मणों को होगा। उनके अनुसार, ब्राह्मण व्यवस्था जाति जनगणना की प्रक्रिया को रोकने के लिए विभिन्न दांव-पेंचों का इस्तेमाल कर रही है। मेश्राम ने कहा कि ब्राह्मणों को यह अच्छी तरह से समझ में आ चुका है कि जाति जनगणना से उनकी स्थिति प्रभावित हो सकती है, इसीलिए वे इसे नहीं कराना चाहते हैं।
जाती जनगणना से सबसे ज्यादा नुकसान ब्राह्मणों को ही होने वाला है यह बात ब्राह्मण व्यवस्था अच्छी तरह समझती है इसलिए जाती जनगणना नहीं कराने के दांव-पेंच में लगी रहती है pic.twitter.com/UXV8hnxyFB
— बामसेफ एक विचारधारा (@margdata8705) August 11, 2024
वामन मेश्राम ने अपनी वीडियो में बताया कि भारत में ब्राह्मणों की आबादी अन्य जातियों की तुलना में काफी कम है, लेकिन इसके बावजूद वे विभिन्न सामाजिक और आर्थिक लाभ प्राप्त कर रहे हैं। मेश्राम का कहना है कि ब्राह्मण समाज के पास जीविका के कई साधन हैं, जो उन्हें विशेष लाभ प्रदान करते हैं। उनकी इस बात से संकेत मिलता है कि जाति जनगणना से ब्राह्मणों की इस स्थिति पर असर पड़ सकता है, जिससे उन्हें होशियार रहना पड़ सकता है।
जाति जनगणना के दौरान, विभिन्न जातियों की जनसंख्या और उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति की जानकारी एकत्र की जाती है। यह जानकारी सरकार को सामाजिक और विकासात्मक नीतियों को लागू करने में मदद करती है। मेश्राम का कहना है कि ब्राह्मण व्यवस्था जाति जनगणना को रोकने के लिए संभावित रणनीतियों का इस्तेमाल कर रही है ताकि उनकी स्थिति जस की तस बनी रहे।
इस संदर्भ में कई विशेषज्ञों का मानना है कि जाति जनगणना का उद्देश्य समाज के विभिन्न वर्गों की वास्तविक स्थिति को उजागर करना है, जिससे उनके विकास के लिए उचित योजनाएं बनाई जा सकें। हालांकि, यह भी सच है कि किसी विशेष जाति का अत्यधिक लाभ हो सकता है, यदि उनकी जनसंख्या कम है और वे विभिन्न सामाजिक और आर्थिक योजनाओं का फायदा उठा रहे हैं।
ब्राह्मणों के खिलाफ उठाए जा रहे इन दावों को लेकर अब देखना होगा कि सरकार किस प्रकार से जाति जनगणना की प्रक्रिया को निष्पक्ष और पारदर्शी बनाए रखने में सक्षम होती है। समाज के सभी वर्गों के विकास के लिए जाति जनगणना के महत्व को समझना और स्वीकार करना आवश्यक है।