EWS का लाभ सिर्फ सामान्य वर्ग को ही क्यों: हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार से मांगा जवाब

जबलपुर: हाईकोर्ट ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) के लाभ को केवल सामान्य वर्ग तक सीमित रखने के प्रावधान पर सवाल उठाया है। चीफ जस्टिस रवि विजय मलिमठ और जस्टिस विशाल मिश्रा की खंडपीठ ने इस मामले में केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर छह सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने के निर्देश दिए हैं।

यह जनहित याचिका "एडवोकेट यूनियन फॉर डेमोक्रेसी एंड सोशल जस्टिस" नामक संगठन द्वारा दायर की गई है। इसमें कहा गया है कि गरीबी सभी जातियों में पाई जाती है, न कि केवल सामान्य वर्ग में। याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि ईडब्ल्यूएस का लाभ केवल सामान्य वर्ग तक सीमित रखना अनुचित है और भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15(6) और 16(6) के विपरीत है। याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता रामेश्वर पी. सिंह और विनायक शाह ने पक्ष रखा।

याचिका में 17 जनवरी 2019 को भारत सरकार द्वारा लागू की गई इस नीति की संवैधानिकता को पांच मुख्य आधारों पर चुनौती दी गई है। याचिकाकर्ताओं का दावा है कि अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी), अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) को ईडब्ल्यूएस लाभ से वंचित करना अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है, जो कानून के समक्ष समानता की गारंटी देता है। उन्होंने यह भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले में इस नीति की सही तरीके से समीक्षा नहीं की गई है और ईडब्ल्यूएस आरक्षण को वर्टिकल आरक्षण के रूप में लागू करना असंवैधानिक है। इस नीति के तहत गरीबी के आधार पर जातिगत भेदभाव किया जा रहा है।

याचिकाकर्ताओं ने यह भी उल्लेख किया कि 103वें संविधान संशोधन के तहत ईडब्ल्यूएस आरक्षण का लाभ सभी वर्गों के गरीबों को दिया जाना चाहिए था। प्रारंभिक सुनवाई के बाद, कोर्ट ने इन आधारों पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा है।

चुनौती के मुख्य आधार:

1. ईडब्ल्यूएस आरक्षण नीति संविधान के अनुच्छेद 15(6) और 16(6) से असंगत है।

2. ओबीसी, एससी, और एसटी समुदायों को ईडब्ल्यूएस लाभ से वंचित करना अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है।

3. सुप्रीम कोर्ट के फैसले में केंद्र सरकार की 17 जनवरी 2019 की नीति की सही समीक्षा नहीं की गई।

4. ईडब्ल्यूएस आरक्षण एक विशेष आरक्षण है जिसे वर्टिकल नहीं, बल्कि हॉरिजॉन्टल लागू किया जाना चाहिए, जैसा कि वर्तमान दृष्टिकोण असंवैधानिक है।

5. नीति जाति के आधार पर गरीबों के बीच भेदभाव करती है, जो समानता के सिद्धांत का उल्लंघन करती है।

हाईकोर्ट द्वारा केंद्र सरकार को नोटिस जारी करना, ईडब्ल्यूएस नीति और भारत में सामाजिक न्याय के प्रभाव पर महत्वपूर्ण कानूनी परीक्षा का मंच तैयार करता है।

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