संपादकीय: बीजेपी के लिए दंगा कौन करता है?
🖋️दिलीप मंडल
भाजपा के लिए दंगा और हिंसा केवल एक राजनीतिक औजार नहीं है, बल्कि यह एक ऐसा विषय है जो गहराई से समाज के विभिन्न वर्गों में फैले असंतोष को उजागर करता है। इस संदर्भ में, सवाल उठता है कि बीजेपी के लिए दंगा कौन करता है?
हमारी सुसंस्कृत और प्रतिष्ठित समाज में, ब्राह्मण वर्ग दंगा करने की बात तो बड़ी सहजता से कर सकता है, लेकिन अपने परिवार के किसी सदस्य को इस कार्य में शामिल नहीं करेगा। इसी तरह, बनिया वर्ग भी जल्दी ही अपनी दुकान का शटर बंद करके खुद को सुरक्षित मान लेगा। ठाकुर वर्ग की स्थिति सबसे विचित्र है – वे अकेले दंगों को सँभालने की जिम्मेदारी निभाते हैं, लेकिन सवाल यह है कि वे क्यों और कैसे यह सब करेंगे?
संपादकीय
— Dilip Mandal (@Profdilipmandal) August 8, 2024
बीजेपी के लिए दंगा कौन करता है?
🖋️दिलीप मंडल
ब्राह्मण दूर से या सोशल मीडिया पर खूब हुलेले करेगा पर अपना बच्चा दंगा करने भेजेगा नहीं और बनिया तो फ़ौरन दुकान का शटर बंद करके घुस जायेगा। बचे ठाकुर साहब। वे अकेले कितना सँभालेंगे? क्यों सँभालेंगे?
ये कुल हिंसक धार्मिक…
बीजेपी ने जिन लोगों को दंगों के मुख्य बल के रूप में इस्तेमाल किया है, वे एससी, एसटी, और ओबीसी समुदायों के लोग हैं। इन वर्गों के प्रति सरकार की बेरुखी और उपेक्षा ने इन्हें नाराज कर दिया है। इन्हें नौकरी देने के नाम पर सरकार केवल दिखावे की नीति अपनाती है, जबकि वास्तविकता में आउटसोर्सिंग और विभाजन जैसी नीतियों के तहत इन वर्गों को अधिकारहीन बना दिया गया है। सरकार के विभागों में एससी, एसटी, और ओबीसी वर्ग के लोगों के लिए बड़े पदों पर कोई प्रतिनिधित्व नहीं है, जो इन वर्गों को सकारात्मक संकेत दे सके।
मंत्री वर्ग, जो इन समुदायों से आते हैं, वे खुद को छुपाकर रखते हैं। उनकी उपस्थिति केवल दिखावे की है, और कैंडिडेट न मिलने की स्थिति को लेकर NFS (नॉट फाउंड सुटेबल) की संज्ञा दी जाती है। इसके अलावा, लैटरल एंट्री जैसी नीतियों के माध्यम से सरकार को इन वर्गों की उपस्थिति की आवश्यकता भी महसूस नहीं हो रही है।
भाजपा के हिंदू भाईचारे में 'सवर्ण' भाईयों की प्रमुखता है, जबकि बाकी वर्गों को केवल चारा मान लिया जाता है। इस स्थिति को देखते हुए, यह साफ है कि सरकार न तो वक्फ बिल पास कर पा रही है और न ही मंदिर कार्ड की राजनीति को सही तरीके से चला पा रही है।
बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व भले ही सुरक्षा में लगा हुआ हो, लेकिन आधारभूत संरचना ध्वस्त हो चुकी है। सोशल मीडिया पर भाजपा समर्थकों की सक्रियता में कमी आ गई है, और प्रधानमंत्री तक की आवाज भी ठंडी पड़ गई है।
विपक्ष के विरोध और असहमति के चलते, #WaqfBoardBill संयुक्त संसदीय समिति में फंस गया है, जो कि बर्फ का कमरा माना जाता है। केंद्रीय मंत्री सरकार की नीतियों के खिलाफ सार्वजनिक बयान दे रहे हैं, और आने वाले चुनावों के मद्देनजर हरियाणा और महाराष्ट्र जैसे महत्वपूर्ण राज्यों की चुनौतियाँ भी सामने हैं।
तो, यही कहना है कि बीजेपी को दंगे और हिंसा के लिए जिम्मेदार ठहराने के बजाय, यह समझना चाहिए कि इसका वास्तविक स्रोत क्या है और इसका समाधान कैसे निकाला जाए।