हमारी लड़ाई केवल एक जाति या वर्ग की नहीं है, बल्कि पूरे समाज की है। हमारे खिलाफ हर मोर्चे पर तीर चलाए जा रहे हैं, लेकिन हमारा सीना फौलाद की तरह मजबूत है। हम मजदूर तबके से उठकर आए हैं और अब हम केंद्र सरकार से खुली चुनौती दे रहे हैं: जाति जनगणना और आर्थिक सर्वेक्षण करवाकर दिखाओ कि किस जाति को कितनी भागीदारी और प्रतिनिधित्व मिला है।
हम जानना चाहते हैं कि देश के प्राकृतिक संसाधनों में दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों की कितनी हिस्सेदारी है। आंकड़े सामने लाओ, बताओ कि किस जाति को कितनी अवसर मिले।
हाल ही में एक दलित महिला के बलात्कार के मामले में, हाई कोर्ट के जज ने अपराधी को बरी कर दिया, यह कहकर कि स्वर्ण जाति का व्यक्ति दलित के साथ ऐसा नहीं कर सकता। यह शर्मनाक और अस्वीकार्य है।
दलित मंत्री ने कर दिया ऐलान हम जेल जाएंगे लेकिन यह भी जायेंगे साथ दादा जज, बाप जज, बेटा जज
— आदिवासी समाचार (@AadivasiSamachr) August 6, 2024
यह विश्व गुरु बनाएंगे 2% जनता को आगे लेकर यह केवल गुरु घंटाल बना सकते हैं केवल और कुछ नहीं
कर दिया आर पार की जंग का ऐलान #SaveReservation #21_अगस्त_भारत_बन्द pic.twitter.com/wew5FxC2Ey
जजों और न्यायाधीशों की नियुक्ति में भी जातिवाद देखा जाता है। एक ही परिवार के लोग बार-बार जज बनते हैं, जबकि अन्य जातियों को इस मौके से वंचित किया जाता है।
सरकारी स्कूलों को जानबूझकर कमजोर किया जा रहा है। पिछले 15-20 सालों में लाखों सरकारी स्कूल बंद कर दिए गए हैं। प्रोफेशनल डिग्रियों की लागत आसमान छू रही है, और कितने लोग इसका खर्च उठा सकते हैं?
सुप्रीम कोर्ट ने प्रमोशन में आरक्षण पर तीन शर्तें लगाई हैं, लेकिन क्या किसी दलित या पिछड़े मुख्यमंत्री ने इस पर कोई काम किया है? क्या उन्होंने जाति जनगणना या आर्थिक सर्वेक्षण करवाए हैं?
हमारे संघर्ष में सबसे बड़ी समस्या यह है कि हमारे हक की लड़ाई लड़ने वाले लोग खुद ही इस लड़ाई में भाग नहीं लेते। जो लोग नौकरी में हैं या बड़े पदों पर हैं, वे इस आंदोलन का हिस्सा नहीं बनते।
हमें मिलकर एकजुट होकर लड़ना होगा। यह लड़ाई हम जेलों से, गोलियों से नहीं हारेंगे। हमारा विचार और हमारा संघर्ष जिंदा रहेगा।
सच्चाई को उजागर करने और समाज के हक के लिए लड़ाई जारी रखेंगे। हमारी उम्मीद और संघर्ष निरंतर रहेगा। जय भीम, जय भारत, जय संविधान।