हाल ही में, एक विशेष आयत के संदर्भ में कुछ विवादास्पद टिप्पणियां सामने आई हैं। कहा जा रहा है कि सूरा आराफ़ की आयतें मुसलमानों के लिए इस धरती को उनके पूर्वजों की जागीर बताती हैं। यह दावा किया जा रहा है कि इस्लामी दृष्टिकोण से पूरी दुनिया की जमीन मुसलमानों की है, जिसे अल्लाह ने उनके लिए ही बनाया है।
सूरा आराफ़, जो कि कुरान का सातवां अध्याय है, में कई आयतें हैं जो मनुष्यों और उनके बीच के संबंधों पर ध्यान केंद्रित करती हैं। लेकिन, इस अध्याय की जिन आयतों का संदर्भ दिया जा रहा है, उन्हें संदर्भ से हटाकर प्रस्तुत किया जा रहा है, जिसके कारण गलतफहमी पैदा हो रही है।
आयत नंबर 26 से लेकर 31 तक के संदर्भ में अल्लाह ने मनुष्यों को उन चीज़ों के बारे में बताया है जो उन्होंने उनके लिए बनाई हैं। इन आयतों में मुख्यतः इंसान की पोशाक और उनके लिए प्रदान की गई भोजन की विविधता का वर्णन है। अल्लाह ने इस बात पर जोर दिया है कि उसने जमीन और इसकी सभी चीजें मनुष्यों के लिए बनाई हैं, ताकि वे उनका सही इस्तेमाल कर सकें और उसकी नेमतों का शुक्रिया अदा कर सकें।
"ओ आदम की संतान! हमने तुम पर वस्त्र भेजे हैं कि तुम्हारे गुप्तांग को छुपाएं और तुम्हारी शोभा के लिए भी। परहेजगारी का वस्त्र सबसे अच्छा है। यह अल्लाह की निशानियों में से एक है, ताकि वे नसीहत हासिल करें।" (सूरा आराफ़, आयत 26)
ये जमीन हमारे बाप की जागीर है!
— Panchjanya (@epanchjanya) August 17, 2024
दुनिया की सारी जमीन मुसलमानों की है और अल्लाह की है।
इस दुनिया की सारी जमीन अल्लाह ने मुसलमानों के लिए ही बनाई है।
सूरा नंबर 7 के आयात नंबर 26 से लेकर 31 तक आप पढ़ेंगे तो अल्लाह ने फरमाया है
"हमने जमीन की हर चीज सिर्फ मुसलमानों के लिए बनाई है।" pic.twitter.com/Too7GxOXmf
ये आयतें मानवता के लिए अल्लाह की नेमतों का बखान करती हैं, न कि किसी एक समूह या समुदाय के लिए विशेषाधिकार का दावा। कुरान की आयतों की व्याख्या हमेशा संदर्भ के साथ की जानी चाहिए, ताकि सही संदेश सामने आ सके। मुसलमानों को भी इस्लाम के संदेश को सही संदर्भ में समझने और प्रसारित करने की जिम्मेदारी है।
आज के समय में, ऐसे दावों से सामाजिक एकता और शांति को नुकसान पहुंच सकता है। धार्मिक ग्रंथों का सही ढंग से अध्ययन और उसकी व्याख्या करना अत्यंत आवश्यक है। धार्मिक शिक्षाओं का गलत अर्थ निकालकर समाज में भ्रामक संदेश फैलाना न सिर्फ समाज के लिए हानिकारक है, बल्कि यह उस धर्म के मूल संदेश को भी कमजोर करता है।
इसलिए, कुरान की आयतों को समझने के लिए उनके वास्तविक संदर्भ और उद्देश्य को समझना जरूरी है। इस्लाम, जो शांति, प्रेम, और न्याय का धर्म है, को गलत ढंग से प्रस्तुत करना अनुचित है।