नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए आरक्षण से जुड़े एक महत्वपूर्ण मुद्दे पर फैसला दिया। अदालत ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के उस फैसले को खारिज कर दिया है, जिसमें आरक्षित श्रेणी के मेधावी छात्रों को सामान्य श्रेणी की सीटों पर प्रवेश देने से इनकार किया गया था। इस फैसले के बाद अब SC/ST और OBC के मेधावी छात्र, यदि वे अपनी योग्यता के आधार पर सामान्य कोटे की सीटों पर प्रवेश के पात्र हैं, तो उन्हें इन सीटों पर भी प्रवेश मिल सकेगा।
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने एक मामले में निर्णय दिया था कि आरक्षण का लाभ लेने वाले छात्र केवल आरक्षित सीटों पर ही प्रवेश प्राप्त कर सकते हैं। इसका मतलब यह था कि SC/ST और OBC के छात्रों को, भले ही वे सामान्य श्रेणी में अधिक अंक प्राप्त कर लें, उन्हें सामान्य सीटों पर प्रवेश का अधिकार नहीं दिया जाएगा। इस फैसले ने देशभर में शिक्षा के क्षेत्र में एक नई बहस को जन्म दिया था।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में राम नरेश उर्फ रिंकू कुशवाहा और अन्य ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील दाखिल की थी। जस्टिस बीआर गवई और केवी विश्वनाथन की पीठ ने अपील को स्वीकार करते हुए फैसला दिया कि अगर आरक्षित श्रेणी के छात्र सामान्य कोटे की सीटों पर अपनी योग्यता के बल पर प्रवेश पाने के हकदार हैं, तो उन्हें इन सीटों पर प्रवेश दिया जाना चाहिए।
फैसले का महत्व
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि यह शिक्षा में समानता और योग्यता के आधार पर अवसर प्रदान करने की दिशा में एक बड़ा कदम है। यह फैसला सुनिश्चित करता है कि SC/ST और OBC वर्ग के मेधावी छात्रों को उनके प्रदर्शन के आधार पर किसी भी प्रकार की बाधा का सामना नहीं करना पड़ेगा, और वे भी सामान्य श्रेणी की सीटों पर अपना हक जता सकेंगे।
शिक्षा क्षेत्र में संभावित प्रभाव
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला शिक्षा के क्षेत्र में व्यापक प्रभाव डाल सकता है। इससे न केवल आरक्षित वर्ग के मेधावी छात्रों को प्रोत्साहन मिलेगा, बल्कि सामान्य श्रेणी की सीटों पर प्रतिस्पर्धा भी बढ़ेगी। इससे शिक्षा प्रणाली में एक नई दिशा और ऊर्जा का संचार होगा, जिससे समाज के सभी वर्गों को समान अवसर मिल सकेगा।
इस फैसले से यह भी स्पष्ट हो गया है कि आरक्षण का उद्देश्य सामाजिक न्याय को सुनिश्चित करना है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि योग्य छात्रों को उनके हक से वंचित किया जाए। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला शिक्षा के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हो सकता है।