गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जातियों (SC) और अनुसूचित जनजातियों (ST) के भीतर उप-वर्गीकरण (कोटे के भीतर कोटा) की वैधता पर महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया। इस फैसले के तहत, राज्यों को SC और ST समुदायों के भीतर उप-वर्गीकरण की अनुमति दी गई है।
सात जजों की संविधान पीठ ने इस मामले पर विचार किया, जिसकी अध्यक्षता Chief Justice of India (CJI) डी.वाई. चंद्रचूड़ ने की। इस पीठ में जस्टिस बी.आर. गवई, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी, जस्टिस पंकज मिथल, जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा भी शामिल थे। इस निर्णय में छह जजों ने एकमत होकर उप-वर्गीकरण को मंजूरी दी, जबकि जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी ने असहमति जताई।
CJI डी.वाई. चंद्रचूड़ ने अपने फैसले में ऐतिहासिक संदर्भों का हवाला दिया। उन्होंने बताया कि अनुसूचित जातियां एक समान समूह नहीं हैं और उप-वर्गीकरण संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत समानता के सिद्धांत का उल्लंघन नहीं करता। इसके अलावा, उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि उप-वर्गीकरण संविधान के अनुच्छेद 341(2) का उल्लंघन नहीं है, और अनुच्छेद 15 और 16 में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो उप-वर्गीकरण पर रोक लगाए।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी उल्लेख किया कि अनुसूचित जातियां एक समान समूह नहीं हैं और विभिन्न जातियों के बीच भेदभाव की डिग्री भिन्न हो सकती है। इस आधार पर, सरकार को उप-वर्गीकरण की अनुमति दी गई है ताकि अधिक पीड़ित लोगों को आरक्षण के लाभ पहुंचाए जा सकें। कोर्ट ने 2004 के 'चिन्नैया' मामले में आए फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें SC के उप-वर्गीकरण के खिलाफ निर्णय दिया गया था।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उप-वर्गीकरण जातियों के भेदभाव की डिग्री के आधार पर किया जाना चाहिए। यह प्रक्रिया राज्यों द्वारा सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में इन जातियों के प्रतिनिधित्व के अनुभवजन्य डेटा के संग्रह के माध्यम से की जानी चाहिए। यह प्रक्रिया किसी भी राज्य सरकार की इच्छा पर निर्भर नहीं होनी चाहिए।
यह मामला पंजाब सरकार के उस प्रावधान से शुरू हुआ था, जिसमें अनुसूचित जातियों के आरक्षित सीटों में से 50% सीटें ‘वाल्मिकी’ और ‘मजहबी सिख’ जातियों को देने का प्रावधान किया गया था। 2004 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले को आधार बनाते हुए पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने इस प्रावधान पर रोक लगा दी थी।
इस फैसले के खिलाफ पंजाब सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी। 2020 में, सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ ने कहा कि वंचित तबकों तक लाभ पहुंचाने के लिए उप-वर्गीकरण आवश्यक है। इस मामले को दो अलग-अलग पीठों के फैसलों के बाद सात जजों की पीठ के पास भेजा गया था।
इस महत्वपूर्ण निर्णय से अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के भीतर उप-वर्गीकरण की प्रक्रिया को कानूनी मान्यता मिल गई है, जो भविष्य में इन समुदायों के भीतर सामाजिक और आर्थिक न्याय सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है।