सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (एससी-एसटी) अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत अपराध तभी माना जाएगा जब अपमान का उद्देश्य पूरे समुदाय को अपमानित करना हो। व्यक्तिगत टिप्पणी या अपमान के मामले में यह कानून लागू नहीं होगा। इस फैसले के पीछे न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला की पीठ का मानना है कि केवल व्यक्तिगत स्तर पर की गई टिप्पणियों को एससी-एसटी एक्ट के तहत अपराध की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता।
यह आदेश सुप्रीम कोर्ट ने यूट्यूबर शाजन स्कारिया को अग्रिम जमानत देते हुए दिया, जो मरुनादन मलयाली चैनल चलाते हैं। स्कारिया पर एक एससी-एसटी समुदाय के सदस्य के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी करने का आरोप था। उनके खिलाफ दर्ज की गई शिकायत के आधार पर मामला एससी-एसटी एक्ट के तहत दर्ज किया गया था। स्कारिया ने इस मामले में अग्रिम जमानत के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एससी-एसटी एक्ट कानून के तहत अपराध तभी लागू होगा, जब पूरे समुदाय को अपमानित करने का इरादा हो। यह व्यक्तिगत टिप्पणी पर लागू नहीं होता।
— Ambedkarite People's Voice (@APVNews_) August 24, 2024
मरुनादन मलयाली चैनल चलाने वाले यूट्यूबर शाजन स्कारिया को अग्रिम जमानत देते हुए न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा और न्यायमूर्ति जेबी… pic.twitter.com/kW1JUUJ6As
अदालत ने अपने आदेश में स्पष्ट किया कि एससी/एसटी समुदाय के किसी सदस्य का हर अपमान या धमकी इस अधिनियम के तहत नहीं आ सकती, जब तक कि वह अपमान जाति-आधारित भावना से प्रेरित न हो और उसका उद्देश्य पूरे समुदाय को अपमानित करना न हो। कोर्ट ने कहा कि अगर किसी व्यक्ति ने केवल व्यक्तिगत द्वेष या अन्य कारणों से कोई टिप्पणी की है, और वह टिप्पणी पूरे समुदाय के सम्मान को ठेस पहुंचाने के इरादे से नहीं की गई है, तो इसे एससी-एसटी एक्ट के तहत अपराध नहीं माना जा सकता।
इस फैसले से यह स्पष्ट होता है कि एससी-एसटी एक्ट का उपयोग न्यायालय एक स्पष्ट और सख्त मानक तय कर रहा है। यह निर्णय न केवल कानून की सटीकता को सुनिश्चित करता है, बल्कि व्यक्तिगत अधिकारों और समुदाय के सम्मान के बीच संतुलन भी स्थापित करता है। इस फैसले का असर भविष्य में आने वाले मामलों पर भी पड़ेगा, जहां एससी-एसटी एक्ट के तहत दर्ज मामलों की गंभीरता और उद्देश्य की जांच की जाएगी।