छात्र आत्महत्याएं: भारत में फैल रही महामारी, छात्रों द्वारा आत्महत्या की दर में प्रतिवर्ष 4% की वृद्धि: NCRB

भारत में छात्रों द्वारा आत्महत्या की घटनाओं में चिंताजनक वृद्धि हो रही है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, देश में छात्र आत्महत्याओं की दर प्रतिवर्ष 4% की दर से बढ़ रही है। यह वृद्धि दर न केवल जनसंख्या वृद्धि और कुल आत्महत्या प्रवृत्तियों से अधिक है, बल्कि राष्ट्रीय औसत से भी दोगुनी है। यह तथ्य भारत के शैक्षणिक प्रणाली और सामाजिक ढांचे में गहरे संकट की ओर इशारा करता है।

रिपोर्ट में यह बताया गया है कि महाराष्ट्र, तमिलनाडु और मध्यप्रदेश ऐसे राज्य हैं जहां छात्र आत्महत्याओं की दर सबसे अधिक है। इन तीन राज्यों में कुल राष्ट्रीय आत्महत्याओं का एक तिहाई हिस्सा शामिल है, जो यह दर्शाता है कि वहां के छात्र अत्यधिक दबाव का सामना कर रहे हैं। विशेष रूप से महाराष्ट्र और तमिलनाडु में, शैक्षिक प्रतियोगिता और परीक्षा के दबाव ने छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा असर डाला है।

कोटा, जो कि राजस्थान में स्थित है और देश के प्रमुख कोचिंग केंद्रों में से एक है, इस सूची में 10वें स्थान पर है। यह स्थान कोटा जैसे शैक्षिक केंद्रों में छात्रों पर पड़ने वाले दबाव को दर्शाता है। इन कोचिंग संस्थानों में छात्रों को अत्यधिक प्रतिस्पर्धा और उच्चतम अंकों के लिए प्रेरित किया जाता है, जिसके कारण उनमें मानसिक तनाव बढ़ता है और कुछ मामलों में वे आत्महत्या जैसे कठोर कदम उठाने पर मजबूर हो जाते हैं।

विशेषज्ञों का मानना है कि भारतीय शैक्षणिक प्रणाली में बदलाव की अत्यंत आवश्यकता है। वर्तमान प्रणाली छात्रों को एक-दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा करने के लिए प्रेरित करती है, बजाय इसके कि वह उनकी क्षमताओं को विकसित करने और उनके समग्र कल्याण पर ध्यान केंद्रित करे। इसका परिणाम यह हो रहा है कि छात्र अपने मानसिक स्वास्थ्य की अनदेखी करते हुए सिर्फ शैक्षणिक सफलता की दौड़ में भाग ले रहे हैं।

यह जरूरी है कि हमारे शैक्षणिक संस्थानों में एक व्यवस्थित, व्यापक और मजबूत करियर और कॉलेज परामर्श प्रणाली का निर्माण किया जाए। यह परामर्श प्रणाली छात्रों को न केवल उनके करियर के लिए सही मार्गदर्शन देगी, बल्कि उन्हें जीवन की चुनौतियों से निपटने के लिए मानसिक रूप से भी तैयार करेगी। इसके अलावा, मानसिक स्वास्थ्य को शैक्षणिक पाठ्यक्रम में एकीकृत किया जाना चाहिए ताकि छात्रों को प्रारंभिक स्तर से ही इसके महत्व का ज्ञान हो सके।

छात्र आत्महत्याओं की इस गंभीर समस्या से निपटने के लिए हमें शैक्षिक प्रणाली में सुधार और मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता है। केवल तभी हम अपने बच्चों को एक सुरक्षित और स्वस्थ भविष्य दे पाएंगे।

Rangin Duniya

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