समाजवादी पार्टी (सपा) ने हाल के लोकसभा चुनाव में खासकर पासी समुदाय के वोटों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा प्राप्त किया था। हालांकि, चार दिन के भीतर इस वोट का बड़ा हिस्सा पार्टी से खिसक चुका है। इस संदर्भ में सामाजिक विश्लेषक दिलीप मंडल ने चिंता जताई है और पार्टी के दलित समर्थक अचानक चुप हो जाने की ओर इशारा किया है।
मंडल ने कहा कि सपा ने दलित समुदाय, विशेषकर पासी वोटरों को अपने साथ रखने की कोशिश की थी, लेकिन चार दिन में ही इस वोटबैंक में बड़ा बदलाव देखने को मिला है। उनके अनुसार, सपा के दलित समर्थक और बहुजन चैनल जो पहले पार्टी के पक्ष में थे, अब घर वापसी कर चुके हैं।
समाजवादी पार्टी ने लोकसभा चुनाव में ठीक ठाक SC ख़ासकर पासी वोट लिया था। चार दिन में उसका बड़ा हिस्सा खिसक चुका है। बँटवारे के सीधे निशाने पर पासी हैं।
— Dilip Mandal (@Profdilipmandal) August 4, 2024
सपा के लिए बोलने वाले दलित एकाउंट अचानक से चुप 🤫 हो गए। जो बहुजन चैनल उनके साथ गए थे, सबने घर वापसी कर ली।
सपा की मुश्किलों की एक मुख्य वजह सुप्रीम कोर्ट का SC/ST में क्रीमी लेयर को लेकर लिया गया फैसला है। इस फैसले का सपा ने खुलकर समर्थन किया था, जिससे दलित वोटरों के बीच पार्टी की छवि पर नकारात्मक असर पड़ा है। मंडल का कहना है कि इस फैसले के समर्थन ने सपा को अपने ही वोटरों के बीच असंतोष का सामना करने के लिए मजबूर कर दिया है।
दिलीप मंडल ने यह भी कहा कि सपा ने दलित और आदिवासी मुद्दों पर कभी भी सच्चे समर्थन का प्रदर्शन नहीं किया। क्रीमी लेयर के फैसले से पार्टी ने अपने पांव पर कुल्हाड़ी मार ली है और इसका असर आगामी चुनावों में देखा जा सकता है।
आलोचक मानते हैं कि सपा की रणनीति और दलित मुद्दों पर उसके रुख ने पार्टी की छवि को चोट पहुंचाई है। दलित समुदाय में एक मजबूत विरोध का सामना करते हुए, पार्टी को अपनी नीतियों पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता हो सकती है। आगामी चुनावों में इस बदलाव का प्रभाव देखने लायक होगा, और सपा को अब अपने पारंपरिक वोट बैंक को पुनः जीतने के लिए कठिन प्रयास करना पड़ेगा।