पेरिस ओलंपिक में विनेश फोगाट का डिसक्वालिफिकेशन खेल जगत के लिए एक बड़ी खबर बन गई थी। भारतीय कुश्ती की चमकती सितारा विनेश को ओलंपिक के अंतिम चरण से बाहर कर दिया गया था, क्योंकि उनका वजन निर्धारित सीमा से अधिक हो गया था। इसके बाद, विनेश के कोच वोलर अकोस ने एक चौंकाने वाला खुलासा किया है जो दिल दहला देने वाला है।
हंगरी में एक फेसबुक पोस्ट में, जिसे बाद में हटाया गया, कोच वोलर अकोस ने बताया कि ओलंपिक के फाइनल से एक रात पहले विनेश ने अपने वजन को कम करने के लिए जानलेवा संघर्ष किया था। कोच के अनुसार, वह क्षण ऐसा था जब उन्हें डर था कि विनेश की जान भी जा सकती थी। उन्होंने बताया, "सेमीफाइनल के बाद, विनेश का वजन 2.7 किलोग्राम अधिक था। हमने इसे घटाने के लिए साढ़े पांच घंटे तक मेहनत की, लेकिन फिर भी 1.5 किलोग्राम वजन कम नहीं हो पाया। उसका शरीर पूरी तरह से थक चुका था, और पसीने की एक बूंद भी नहीं दिखाई दे रही थी।"
कोच अकोस ने उस रात की खतरनाक परिस्थितियों का वर्णन किया। "कोई विकल्प नहीं बचा था, इसलिए आधी रात से सुबह 5:30 बजे तक, विनेश ने कार्डियो मशीनों और कुश्ती के मूव्स पर काम किया। वह बार-बार गिरती रही, लेकिन फिर भी उसने हार नहीं मानी। सॉना में एक घंटा बिताने के बाद भी वजन कम नहीं हुआ। मुझे हर पल डर था कि वह मर सकती है," उन्होंने लिखा।
वोलर अकोस ने यह भी बताया कि विनेश फोगाट पर गोल्ड मेडल जीतने का जुनून सवार था। "उसकी मेहनत और जुनून ने उसे उस हद तक पहुंचा दिया था, जहां से वापसी नहीं हो सकती थी। वह देश के लिए अपनी जान भी देने को तैयार थी।"
BIG BREAKING & SHOCKING NEWS 📢#पेरिस_ओलंपिक से बाहर होने पर #विनेश_फोगाट के कोच
— 𝙈𝙪𝙧𝙩𝙞 𝙉𝙖𝙞𝙣 (@Murti_Nain) August 17, 2024
वोलर अकोस का दिल दहला देने वाला खुलासा,
कोच ने कहा- 'वह मर भी सकती थी'
गौरतलब है कि #पेरिस_ओलंपिक में वजन ज्यादा होने के चलते विनेश फोगाट को डिसक्वालीफाई होने पड़ा था।
इंडियन एक्सप्रेस के… pic.twitter.com/2QJb0zBqiM
यह खुलासा एक गंभीर मुद्दे की ओर इशारा करता है कि किसी एथलीट पर कितना दबाव होता है, खासकर तब जब वह अपने देश के लिए मेडल जीतने के जुनून में होता है। विनेश फोगाट के इस संघर्ष ने साबित कर दिया कि ओलंपिक जैसे बड़े मंच पर देश का प्रतिनिधित्व करना सिर्फ शारीरिक क्षमता का ही नहीं, बल्कि मानसिक और भावनात्मक दृढ़ता का भी मामला है।
इस बीच, मोदी सरकार और खेल मंत्री नैनसुख मंडाविया ने विनेश के खेल पर खर्च हुए रुपये तो गिन लिए, लेकिन उसकी जान की कीमत पर किए गए इस संघर्ष को शायद नजरअंदाज कर दिया। यह सवाल उठता है कि क्या खेल प्रशासन और नीति निर्धारकों को एथलीटों की मानसिक और शारीरिक सुरक्षा के बारे में और ध्यान देने की आवश्यकता है?
विनेश फोगाट भले ही इस बार गोल्ड मेडल नहीं जीत सकी हों, लेकिन उनका साहस और जुनून भारत के लिए किसी भी कोहिनूर हीरे से कम नहीं है। उनका यह संघर्ष और समर्पण उन्हें भारतीय खेल जगत का अनमोल रत्न बनाता है, और यह घटना भारतीय खेल प्रशासन के लिए एक सबक है कि एथलीटों की सुरक्षा और स्वास्थ्य को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
विनेश फोगाट का यह जज्बा और संघर्ष हमें यह याद दिलाता है कि सफलता की राह कभी भी आसान नहीं होती। ओलंपिक के इस सफर में उनका संघर्ष देश के हर एथलीट के लिए एक प्रेरणा है।