पीएम मोदी जी की बढ़ी मुश्किलें: Human Rights Watch (HRW) ने मोदी के 176 में से 110 भाषण बताये नफरत भड़काने वाले, देखें वीडियो

नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नफरती भाषणों को लेकर एक नई रिपोर्ट सामने आई है जिसने भारतीय राजनीति में हलचल मचा दी है। Human Rights Watch (HRW) द्वारा जारी की गई इस रिपोर्ट में मोदी के चुनावी भाषणों का गहराई से विश्लेषण किया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक, 2019 के लोकसभा चुनावों के दौरान मोदी ने कुल 176 भाषण दिए, जिनमें से 110 भाषणों में नफरत फैलाने वाले संदेश थे। ये आंकड़े चिंताजनक हैं, खासकर तब जब चुनाव आयोग ने इस मुद्दे पर कोई कार्रवाई नहीं की।

Human Rights Watch की इस रिपोर्ट में मोदी के भाषणों का विश्लेषण किया गया है, जिसमें नफरत फैलाने और विभाजनकारी भाषणों की बढ़ती प्रवृत्ति को उजागर किया गया है। रिपोर्ट के अनुसार, मोदी के भाषणों का असर सीधे तौर पर समाज में देखने को मिला है, खासकर एक धर्म विशेष के खिलाफ भीड़ द्वारा की गई हिंसक घटनाओं, जैसे कि मॉब लिंचिंग में वृद्धि के रूप में। 

चुनाव आयोग की निष्क्रियता पर सवाल उठाए जा रहे हैं। चुनाव आयोग का मुख्य कार्य निष्पक्ष और स्वतंत्र चुनाव सुनिश्चित करना होता है। ऐसे में, जब प्रधानमंत्री के भाषणों में नफरत फैलाने के आरोप लग रहे हैं, चुनाव आयोग की चुप्पी पर कई लोगों ने सवाल उठाए हैं। चुनाव आयोग ने अब तक इस रिपोर्ट पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है। ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या चुनाव आयोग इस रिपोर्ट के आधार पर कोई कदम उठाएगा?

रिपोर्ट सामने आने के बाद, यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि क्या सुप्रीम कोर्ट इस मामले में स्वतः संज्ञान लेगा। भारतीय संविधान के तहत, सुप्रीम कोर्ट को देश में कानून का पालन सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी है। अगर सुप्रीम कोर्ट इस मामले में हस्तक्षेप करता है, तो यह एक बड़ा कदम हो सकता है जो देश की राजनीति और चुनावी प्रक्रियाओं को प्रभावित कर सकता है।

 

इस रिपोर्ट ने एक बार फिर से उस सवाल को उठा दिया है, जो पहले भी कई बार चर्चा का विषय बन चुका है: "आखिर कोई नफरत का सौदागर कैसे हो सकता है?" सत्ता के लिए लोगों को आपस में बांटने की इस राजनीति ने देश के सामाजिक ताने-बाने को नुकसान पहुंचाया है। 

Human Rights Watch की इस रिपोर्ट के बाद, यह देखना होगा कि भारत में राजनीतिक, न्यायिक और संवैधानिक संस्थाएँ क्या कदम उठाती हैं। क्या चुनाव आयोग और सुप्रीम कोर्ट इस रिपोर्ट के आधार पर कार्रवाई करेंगे, या फिर यह मामला भी अन्य मामलों की तरह ठंडे बस्ते में चला जाएगा? देश की जनता को इसका जवाब चाहिए।

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