हाल ही में एक बयान ने यह प्रश्न उठाया कि क्या झारखंड में रहने वाले सभी लोग झारखंडी हैं, और यदि ऐसा है, तो झारखंड राज्य का गठन क्यों हुआ? आलोचक इसे इस तरह से देखते हैं कि झारखंड राज्य की अलग पहचान और सांस्कृतिक विशिष्टता को खारिज किया जा रहा है। वे तर्क करते हैं कि बंगाल में रहने वाला हर व्यक्ति बंगाली नहीं होता, और इसी तरह झारखंडियों की पहचान भी उनके राज्य के आधार पर होनी चाहिए।
सार्वजनिक विमर्श में यह भी सवाल उठाया गया है कि झारखंड पहले बिहार का हिस्सा था, लेकिन सच यह है कि झारखंड और बिहार का साझा इतिहास केवल 88 वर्षों का है। 1912 तक झारखंड बंगाल का हिस्सा था, उसके बाद 1936 में बिहार और उड़ीसा अलग हुए और 15 नवंबर 2000 को झारखंड बिहार से अलग हुआ। इस बीच, उड़ीसा और बंगाल में बसे बिहारी खुद को उड़िया या बंगाली नहीं मानते, लेकिन झारखंड में लोग खुद को झारखंडी मानते हैं।
देश के विभिन्न राज्यों ने अपने मूल निवासियों और जनजातियों के अधिकारों की रक्षा के लिए कई नियम बनाए हैं। विशेषकर उत्तर-पूर्वी राज्यों में बाहरी लोगों के बसने पर रोक लगाने के लिए 'इनर लाइन परमिट' (ILP) प्रणाली लागू की गई है। ILP एक आधिकारिक यात्रा दस्तावेज होता है जो बाहरी व्यक्तियों को सीमित अवधि के लिए राज्य में रहने की अनुमति देता है। इसका उद्देश्य बाहरी व्यक्तियों को जनजातीय क्षेत्रों में बसने से रोकना है।
झारखंड में स्पष्ट स्थानीय नीतियों की कमी के कारण, बाहरी लोग यहां बसने लगे हैं। 1931 की जनगणना के अनुसार, झारखंड में जनजातियों की आबादी लगभग 40% थी और सदानों की आबादी 60% थी। लेकिन, पिछले 30 वर्षों में, बाहरी जनसंख्या में तेजी से वृद्धि हुई है। 1981 की जनगणना के अनुसार, बाहरी आबादी 15% तक पहुँच गई और जनजातियों की आबादी घटकर 28% रह गई।
अधिकांश सरकारी नौकरियों, शैक्षणिक संस्थानों और सार्वजनिक-निजी क्षेत्रों में बाहरी लोगों ने कब्जा कर लिया है। इसका परिणाम यह हुआ है कि आज झारखंड में बाहरी जनसंख्या लगातार बढ़ रही है, जिससे स्थानीय जनजातियों और मूल निवासियों के अधिकार प्रभावित हो रहे हैं।
रांची जैसे जनजातीय बहुल जिलों में, आदिवासी अपनी ही ज़मीन पर बने आधुनिक भवनों, अस्पतालों, स्कूलों, और मॉल्स में सफाईकर्मियों के रूप में काम कर रहे हैं। यह स्थिति अन्य जिलों जैसे बोकारो, धनबाद, और जमशेदपुर में भी देखने को मिलती है। झारखंड में आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा के लिए हालांकि संथाल परगना टेनेंसी एक्ट, 1949 और छोटानागपुर टेनेंसी एक्ट, 1908 जैसे कानून मौजूद हैं, फिर भी अवैध कब्जे बढ़ रहे हैं।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(5) के तहत, नागरिकों को देश के किसी भी भाग में अस्थाई या स्थाई रूप से बसने का अधिकार प्राप्त है। हालांकि यह अधिकार सभी को दिया गया है, लेकिन स्थानीय और जनजातीय हितों की सुरक्षा के लिए विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है ताकि उनकी सांस्कृतिक पहचान और अस्तित्व को सुरक्षित रखा जा सके।