प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि को बढ़ावा देने के लिए आत्म-मुग्धता की नई मिसाल कायम हुई है। IIT खड़गपुर समेत देश की सभी प्रमुख भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों (IITs) को एक सर्कुलर जारी किया गया है, जिसमें कहा गया है कि 'नरेंद्र मोदी इंसान नहीं एक सोच है' नामक एक रिसर्च सेंटर की स्थापना की जाए। इस रिसर्च सेंटर का उद्देश्य मोदी की विचारधारा और उनकी नीतियों का अध्ययन करना होगा।
सर्कुलर में यह भी कहा गया है कि प्रत्येक IIT में एक निबंध प्रतियोगिता का आयोजन किया जाएगा, जिसमें छात्रों को अनिवार्य रूप से भाग लेना होगा। इस प्रतियोगिता का विषय होगा 'कैसे नरेंद्र मोदी ने वैश्विक स्तर पर भारत के रिश्तों को मजबूत किया है'। छात्रों को इस पर निबंध लिखना अनिवार्य होगा, जिससे उन्हें मोदी की विदेश नीति और उनके कार्यों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए प्रेरित किया जाएगा।
इस कदम को लेकर कई शिक्षा और राजनीतिक विश्लेषकों ने गंभीर चिंता जताई है। जाने-माने पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक अशोक वानखेड़े ने इस फैसले की कड़ी आलोचना करते हुए कहा, "यह कदम न केवल निंदनीय है, बल्कि शर्मनाक भी है। देश के प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थानों में इस तरह के निर्देश जारी करना शिक्षा के स्तर को गिराने और छात्रों के बौद्धिक विकास पर नकारात्मक प्रभाव डालने का काम करेगा।"
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— 𝙈𝙪𝙧𝙩𝙞 𝙉𝙖𝙞𝙣 (@Murti_Nain) August 14, 2024
मोदी ने आत्म मुग्धता की सभी सीमाएं की पार,
IIT खड़गपुर के साथ-साथ देश की सभी IITs के लिए एक सर्कुलर निकाला गया है कि सभी जगह
"नरेंद्र मोदी इंसान नहीं एक सोच है" का रिसर्च सेंटर खोलना है और वहाँ एक प्रतियोगिता का आयोजन करना है और सभी छात्रों… pic.twitter.com/lew9ehBqny
वानखेड़े ने आगे कहा, "प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के महिमामंडन की यह प्रक्रिया देश के लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ है। शिक्षण संस्थानों में इस तरह की गतिविधियों का आयोजन कर छात्रों पर विचारधारा थोपने का प्रयास किया जा रहा है। यह न केवल शिक्षण संस्थानों की स्वतंत्रता का हनन है, बल्कि छात्रों के विचारों को भी प्रभावित करने का प्रयास है।"
इस फैसले ने देशभर में व्यापक बहस छेड़ दी है। छात्रों, शिक्षाविदों और समाज के विभिन्न वर्गों ने इस कदम को लेकर गहरी आपत्ति जताई है। उनका कहना है कि इस तरह के निर्णय शिक्षा की गुणवत्ता और स्वतंत्रता पर गंभीर प्रश्नचिन्ह खड़े करते हैं।
देश की IITs, जो अपने उच्च शिक्षा और अनुसंधान के लिए विश्व प्रसिद्ध हैं, उन्हें अब एक राजनीतिक विचारधारा को बढ़ावा देने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। यह देखना बाकी है कि इस सर्कुलर के खिलाफ छात्रों और शिक्षकों की क्या प्रतिक्रिया होगी और क्या सरकार इस पर पुनर्विचार करेगी।
इस घटना ने एक बार फिर देश में लोकतांत्रिक मूल्यों और शिक्षा की स्वतंत्रता पर गहरे सवाल खड़े कर दिए हैं।