**आदिवासी ट्विटर हैंडल के विवादास्पद ट्वीट पर हंगामा, मोदी सरकार की नीतियों पर सवाल**
नई दिल्ली, 15 अगस्त: सोशल मीडिया पर सक्रिय एक ट्विटर हैंडल 'आदिवासी समाचार' ने हाल ही में एक ट्वीट के माध्यम से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर गंभीर आरोप लगाए हैं। इस ट्वीट में लिखा गया है कि प्रधानमंत्री मोदी ने स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लाल किले से दिए गए अपने भाषण में भगवान बिरसा मुंडा के बारे में गलत जानकारी दी है।
ट्वीट में आरोप लगाया गया है कि प्रधानमंत्री ने कहा कि बिरसा मुंडा ने 1857 की क्रांति से पहले देश की आजादी के लिए लड़ाई लड़ी थी। जबकि वास्तव में, बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1875 में हुआ था, और वे 20-22 वर्ष की उम्र में स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय हुए थे। आदिवासी समाचार ने इस पर सवाल उठाते हुए कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने जनता के सामने झूठ फैलाया है और उन पर विश्वास नहीं किया जाना चाहिए।
आज तो मोदी जी ने हद ही पार कर डाली झूठ की तो और वह भी लाल किले से भगवान बिरसा मुंडा के लिए बोले कि उन्होंने 1857 की क्रांति से पहले देश की आजादी के लिए लड़ाई लड़ी 20 - 22 की उम्र में
— आदिवासी समाचार (@AadivasiSamachr) August 15, 2024
पर सच तो यह है कि उनका जन्म 15 नवंबर 1875 के दशक में एक गरीब किसान परिवार में हुआ था। इनके पिता… pic.twitter.com/kgo8QS1w6S
यह ट्वीट जल्द ही सोशल मीडिया पर वायरल हो गया, जिससे राजनीतिक गलियारों में हलचल मच गई है। कई लोगों ने इसे आदिवासियों के इतिहास को तोड़-मरोड़ कर पेश करने की कोशिश बताया है। वहीं, प्रधानमंत्री मोदी के समर्थकों का कहना है कि यह ट्वीट सिर्फ राजनीतिक लाभ के लिए किया गया है और इसे बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जा रहा है।
ट्वीट में यह भी कहा गया कि अगर ऐसी गलती कांग्रेस नेता राहुल गांधी से हुई होती, तो मीडिया इसे बढ़ा-चढ़ाकर दिखाती। लेकिन चूंकि यह गलती प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से हुई है, इसलिए मीडिया चुप है। इस टिप्पणी ने मीडिया की निष्पक्षता पर भी सवाल खड़े किए हैं।
हालांकि, इस विवाद पर अभी तक प्रधानमंत्री कार्यालय या भाजपा की तरफ से कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है। लेकिन सोशल मीडिया पर इस मुद्दे पर बहस तेज हो गई है।
इतिहासकारों का कहना है कि बिरसा मुंडा का योगदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण है, लेकिन इसे सही संदर्भ में प्रस्तुत करना आवश्यक है। बिरसा मुंडा ने 1890 के दशक में अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी, जो कि 1857 की क्रांति के बाद की बात है। ऐसे में प्रधानमंत्री मोदी का बयान गलत है, इसे स्वीकार करना होगा।
यह विवाद न केवल प्रधानमंत्री मोदी की आलोचना का कारण बना है, बल्कि इसने देश में चल रही राजनीतिक ध्रुवीकरण की स्थिति को भी उजागर किया है। आदिवासी समुदाय के लोगों ने इस मुद्दे को गंभीरता से लिया है और उम्मीद है कि इस पर सरकार जल्द ही सफाई देगी।