वारसा, पोलैंड - प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पोलैंड में एक महत्वपूर्ण भाषण के दौरान भारत की मानवता के प्रति प्रतिबद्धता को उजागर किया। उन्होंने कहा कि भारतीयों की पहचान की एक विशेषता है – एंपैथी (सहानुभूति)। उन्होंने विश्व मंच पर भारत की भूमिका को रेखांकित करते हुए बताया कि जब भी दुनिया के किसी हिस्से में संकट आता है, भारत हमेशा सबसे पहले मदद के लिए हाथ बढ़ाता है।
प्रधानमंत्री मोदी ने कोविड-19 महामारी का उदाहरण देते हुए कहा, "कोविड एक सदी की सबसे बड़ी आपदा थी, और भारत ने मानवता की भावना के साथ 'ह्यूमैनिटी फर्स्ट' का सिद्धांत अपनाया। हमने दुनिया के 150 से ज्यादा देशों को दवाइयां और वैक्सीन भेजी।" उन्होंने यह भी कहा कि जब भी प्राकृतिक आपदाएँ या भूकंप जैसे संकट आते हैं, भारत का मंत्र हमेशा 'ह्यूमैनिटी' ही रहता है।
प्रधानमंत्री ने भारतीय दृष्टिकोण को स्पष्ट करते हुए कहा कि भारत युद्ध नहीं, बल्कि शांति पर विश्वास करता है। उन्होंने कहा, "भारत बुद्ध की विरासत वाली धरती है, और बुद्ध की शिक्षाएँ शांति पर जोर देती हैं। इसलिए भारत इस क्षेत्र में स्थाई शांति का एक बड़ा समर्थक है।"
भारत का मत स्पष्ट है कि यह युद्ध का युग नहीं है। "हमारी प्राथमिकता उन चुनौतियों का सामना करना है जो मानवता के लिए सबसे बड़े खतरे पैदा करती हैं। इसलिए भारत डिप्लोमेसी और डायलॉग पर बल दे रहा है।" प्रधानमंत्री मोदी ने यह स्पष्ट किया कि भारत वैश्विक संकटों का समाधान संवाद और सहयोग के माध्यम से करना चाहता है, न कि संघर्ष के माध्यम से।
प्रधानमंत्री मोदी के इस बयान ने वैश्विक मंच पर भारत की सकारात्मक और सहानुभूतिपूर्ण भूमिका को उजागर किया। उनके शब्दों ने दर्शाया कि भारत न केवल एक विकासशील राष्ट्र है बल्कि एक ऐसा देश है जो मानवता की सेवा में विश्वास रखता है और वैश्विक शांति के लिए समर्पित है।