नई दिल्ली: देश के बड़े औद्योगिक घराने अडानी समूह के खिलाफ आए हिंडनबर्ग रिपोर्ट के बाद वित्त सचिव सुभाष चंद्र गर्ग ने एक बार फिर से इस मामले की जांच की मांग की है। उन्होंने कहा कि अडानी कांड की कुंडली फिर से खोली जानी चाहिए और इस मामले की जांच सुप्रीम कोर्ट और संयुक्त संसदीय समिति (JPC) दोनों को करनी चाहिए।
वित्त सचिव गर्ग का यह बयान उस समय आया है जब देश में विपक्षी दलों के बीच इस मुद्दे को लेकर काफी चर्चा हो रही है। उन्होंने स्पष्ट रूप से हिंडनबर्ग रिपोर्ट का समर्थन किया और इस बात पर जोर दिया कि इस मामले में उच्च स्तर की जांच की आवश्यकता है। गर्ग ने यह भी कहा कि सिर्फ सेबी की जांच इस मामले को सुलझाने के लिए पर्याप्त नहीं है, बल्कि इसे एक व्यापक जांच की जरूरत है जिसमें सुप्रीम कोर्ट और JPC दोनों शामिल हों।
BIG BREAKING 📢#HindenburgReport पर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के वित्त सचिव सुभाष चन्द्र गर्ग ने रिपोर्ट का समर्थन किया,
— 𝙈𝙪𝙧𝙩𝙞 𝙉𝙖𝙞𝙣 (@Murti_Nain) August 17, 2024
उन्होंने कहा कि अडानी कांड की कुंडली फिर से खोलनी चाहिए और इसकी जांच सुप्रीम कोर्ट और JPC दोनों को करनी चाहिए,
SEBI प्रमुख #माधवी_बुच तो बस मोहरा हैं… pic.twitter.com/UtgGfHwfJx
गर्ग ने अपने बयान में कहा कि "SEBI प्रमुख माधवी बुच को मोहरा बनाना उचित नहीं है। असली दोषी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं क्योंकि SEBI प्रमुख की नियुक्ति उन्हीं के द्वारा की गई थी।" गर्ग के इस बयान ने राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है और इससे अडानी-मोदी गठजोड़ पर नए सवाल उठ खड़े हुए हैं।
इसके साथ ही गर्ग ने नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू जैसे प्रमुख नेताओं की ओर भी इशारा किया कि अब यह उनके ऊपर है कि वे इस मुद्दे पर जनता के हितों की रक्षा करते हैं या मोदी-अडानी के समर्थन में खड़े रहते हैं। उन्होंने कहा कि यह वक्त है जब इन नेताओं को जनता की आवाज़ को सुनना चाहिए और JPC की जांच की मांग का समर्थन करना चाहिए।
इस बयान के बाद राजनीतिक गलियारों में हड़कंप मच गया है और कई विपक्षी दलों ने गर्ग के बयान का समर्थन किया है। उनका कहना है कि यह मुद्दा सिर्फ एक औद्योगिक घराने का नहीं, बल्कि पूरे देश की आर्थिक स्थिति और लोकतांत्रिक प्रणाली से जुड़ा हुआ है। विपक्षी दलों ने भी सुप्रीम कोर्ट और JPC दोनों से इस मामले की व्यापक और निष्पक्ष जांच की मांग की है।
आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू जैसे नेताओं का इस पर क्या रुख रहेगा और क्या यह मुद्दा राजनीतिक समीकरणों में बदलाव लाएगा या नहीं।