नई दिल्ली: एक तलाक के मामले की सुनवाई के दौरान महिला जज ने एक महत्वपूर्ण और सख्त फैसला सुनाया। यह मामला एक शादीशुदा जोड़े से जुड़ा था, जिसमें महिला ने अपने पति से हर महीने 6,16,300 रुपये मेंटिनेंस के तौर पर मांगे थे। यह मांग सुनकर कोर्ट में मौजूद सभी लोग चौंक गए, और मामले ने नया मोड़ ले लिया।
महिला के वकील ने जज के सामने तर्क दिया कि उनकी क्लाइंट को महंगे और ब्रांडेड कपड़े पहनने की आदत है, और वह अक्सर महंगे रेस्टोरेंट्स में खाना खाती हैं। इस कारण उन्हें हर महीने इतने बड़े रकम की आवश्यकता है। यह सुनकर जज साहिबा ने सवाल उठाया, "6 लाख 16 हजार रुपये भला कौन महिला महीने में खर्च करती है? क्या आप नियमों का गलत फायदा नहीं उठा रहे हो?"
ये कोर्ट की सुनवाई एक शादीशुदा जोड़े की हैं जो तलाक के दौरान की है
— Sandeep Chaudhary commentary (@newsSChaudhry) August 22, 2024
उस महिला ने अपने पति से 6,16,300 रुपए प्रति महीना मेंटिनेंस मांगा,
यह बात जब महिला जज के सामने उस महिला के वकील ने रखी तो महिला जज ने कहा कि
6 लाख 16 हज़ार रुपए भला कौन महिला महीने पर खर्च करती है ? क्या आप… pic.twitter.com/utYFD4WpCf
जज ने स्पष्ट किया कि कोर्ट के सामने रखी गई यह मांग अत्यधिक है और यह देखकर लगता है कि इसे वाजिब ठहराने के लिए नियमों का गलत इस्तेमाल किया जा रहा है। उन्होंने कहा, "यदि वह इतनी ही ब्रांडेड चीजों का उपयोग करती हैं और महंगे रेस्टोरेंट्स में जाती हैं, तो फिर उन्हें अपनी आवश्यकता के अनुसार खुद कमाने का प्रयास करना चाहिए।"
यह बयान कोर्ट में सुनने वाले सभी लोगों को हैरान कर गया। जज साहिबा ने यह भी कहा कि पुरुषों को गलत तरीके से एक्सप्लोइट करने के प्रयासों को कोर्ट सहन नहीं करेगा। उनका कहना था कि यह जरूरी है कि न्याय प्रणाली को ऐसे मामलों में सावधानी से काम करना चाहिए, ताकि किसी भी पक्ष को अनावश्यक नुकसान न हो।
इस मामले में जज साहिबा के कड़े रुख ने यह स्पष्ट संदेश दिया कि कोर्ट में केवल तर्कसंगत और न्यायपूर्ण मांगों को ही स्वीकार किया जाएगा। उन्होंने महिला के वकील को यह सलाह दी कि वे अपने क्लाइंट को समझाएं कि अगर वह इतनी उच्च जीवनशैली जीना चाहती हैं, तो उसे अपनी आय के स्रोत खुद पैदा करने चाहिए।
कोर्ट का यह फैसला समाज में उन महिलाओं के लिए एक चेतावनी के रूप में देखा जा रहा है, जो तलाक के दौरान अपने पति से अत्यधिक मेंटिनेंस की मांग करती हैं। साथ ही, यह संदेश भी देता है कि अदालतें केवल न्यायपूर्ण और उचित मांगों को ही मान्यता देंगी, और अनावश्यक मांगों के लिए सख्त रुख अपनाएंगी।