नई दिल्ली: भारत सरकार के गृह मंत्रालय ने 6 अगस्त 2004 को एक महत्वपूर्ण दस्तावेज़ जारी किया था, जिसमें केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों (सीएपीएफ) को संघ के सशस्त्र बलों के रूप में मान्यता दी गई थी। इसी दस्तावेज़ के आधार पर, दिल्ली उच्च न्यायालय ने हाल ही में एक आदेश जारी किया था, जिसमें सीएपीएफ के जवानों को पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) का लाभ देने का निर्देश दिया गया था।
दिल्ली उच्च न्यायालय का यह आदेश केंद्रीय अर्धसैनिक बलों के जवानों के लिए एक महत्वपूर्ण जीत के रूप में देखा जा रहा था, जो लंबे समय से ओपीएस की मांग कर रहे थे। आदेश में स्पष्ट रूप से कहा गया था कि गृह मंत्रालय के दस्तावेज़ के आधार पर, सीएपीएफ के जवानों को संघ के सशस्त्र बलों के समान पेंशन सुविधाएँ दी जानी चाहिए।
हालांकि, जब यह मामला स्पष्ट रूप से आदेश में वर्णित था, तब भी सरकार ने इस निर्णय को चुनौती देने के लिए सुप्रीम कोर्ट का रास्ता अपनाया। इससे अर्धसैनिक बलों के जवानों में निराशा और असंतोष बढ़ा है। कई जवानों का मानना है कि सरकार उनके अधिकारों को लेकर गंभीर नहीं है और उन्हें अनावश्यक कानूनी उलझनों में उलझाया जा रहा है।
भारत सरकार के गृह मंत्रालय ने 6 अगस्त 2004 को एक परिपत्र जारी किया था जिसमें CENTRAL FORCES को ARMED FORCES OF UNION के रूप में मान्यता दी गई थी ll और इसी आधार पर DELHI HIGH COURT ने CAPF के जवानों को पुरानी पेंशन देने का आदेश जारी किया था ll
— PARAMILITARY HELP - CAPF (@Paramilitryhelp) August 28, 2024
जब सब कुछ आदेश में स्पष्ट है फिर… pic.twitter.com/kjPrpEVVAq
विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार का सुप्रीम कोर्ट में जाना एक जटिल और संवेदनशील मुद्दा है। सरकार का पक्ष यह हो सकता है कि वह ओपीएस पर एक व्यापक नीति बनाना चाहती है, जो सभी केंद्रीय कर्मचारियों पर लागू हो। हालांकि, सीएपीएफ के जवानों का यह कहना है कि वे संघ के सशस्त्र बलों के रूप में अपनी पहचान और पेंशन सुविधाओं को लेकर कोई समझौता नहीं करेंगे।
अब सभी की नजरें सुप्रीम कोर्ट पर हैं, जो इस मामले में अंतिम निर्णय देगा। अर्धसैनिक बलों के जवानों को उम्मीद है कि न्यायपालिका उनके पक्ष में फैसला सुनाएगी और उन्हें उनके अधिकारों के प्रति न्याय मिलेगा। वहीं, सरकार के इस कदम से यह सवाल भी उठता है कि क्यों, जब सब कुछ आदेश में स्पष्ट था, तो इस मामले को सुप्रीम कोर्ट तक ले जाया गया।
यह मामला न केवल कानूनी बल्कि राजनीतिक और सामाजिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह देश के उन जवानों के भविष्य को प्रभावित कर सकता है जो सीमाओं पर हमारी सुरक्षा के लिए अपनी जान की बाजी लगाते हैं।