सुप्रीम कोर्ट के हालिया आदेश ने देशभर में हलचल मचा दी है। सर्वोच्च न्यायालय ने अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए आरक्षण में 'कोटे में कोटा' की व्यवस्था को लागू किया है, जिससे आरक्षण की दिशा और नीति पर बहस छिड़ गई है। इस फैसले के बाद मीडिया में राजनीतिक बयानबाजी की बाढ़ आ गई है। आरक्षण विरोधी कुछ व्यक्तियों ने इस फैसले को स्वागतयोग्य करार दिया है, जबकि दलित समाज ने इसे अत्यंत आपत्तिजनक मानते हुए बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन की तैयारी शुरू कर दी है।
लड़ाई बहुत लंबी है तैयार हो जाओ साथियों
— Sunil ASP (@Sunil39628851) August 3, 2024
इस बार मुकाबला आर या पार का होगा
संविधान की तरफ आंख उठाने वालों याद रहे
आ रहे हैं हम मैदान में 21 अगस्त संपूर्ण भारत बंद
जब बात वर्चस्व पर आ जाए
तो टकराना जरुरी होता है।
#21_अगस्त_भारत_बंद@BhimArmyChief@abhijatav07 @Gordhanlilawat… pic.twitter.com/CVwnGHaB3f
लड़ाई बहुत लंबी है तैयार हो जाओ साथियों
— Sunil ASP (@Sunil39628851) August 3, 2024
इस बार मुकाबला आर या पार का होगा
संविधान की तरफ आंख उठाने वालों याद रहे
आ रहे हैं हम मैदान में 21 अगस्त संपूर्ण भारत बंद
जब बात वर्चस्व पर आ जाए
तो टकराना जरुरी होता है।
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आरक्षण विरोधी खेमे का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट का निर्णय देर से आया, लेकिन यह सही दिशा में उठाया गया कदम है। उनका दावा है कि यह आरक्षण की जड़ें खोदने की शुरुआत है। इन लोगों का मानना है कि भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने सीधे तौर पर आरक्षण विरोधी कदम नहीं उठाया, बल्कि सर्वोच्च न्यायालय के माध्यम से इस पर करारा प्रहार किया है। इस फैसले पर कुछ आरक्षण विरोधी समूहों ने मिठाइयां बांटने और खुशियां मनाने का सिलसिला शुरू कर दिया है, जिसे उनकी जीत के रूप में देखा जा रहा है।
वहीं, दलित समाज ने इस फैसले के खिलाफ तीव्र प्रतिक्रिया दी है। देश के विभिन्न हिस्सों में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन की तैयारियां चल रही हैं। सोशल मीडिया पर एक पोस्ट ने हंगामा मचा दिया है, जिसमें 21 अगस्त को सम्पूर्ण भारत बंद का ऐलान किया गया है। इस पोस्ट ने दलित समाज में व्यापक असंतोष पैदा कर दिया है और यह तेजी से वायरल हो रही है। विभिन्न दलित संगठनों और संस्थाओं ने इस भारत बंद की तैयारी के लिए काम शुरू कर दिया है।
21 अगस्त को होने वाले इस देशव्यापी बंद में भाग लेने के लिए विभिन्न दलित संगठनों ने पहले ही अपने-अपने क्षेत्रों में प्रचार और जन जागरूकता अभियान शुरू कर दिए हैं। उनका दावा है कि यह आंदोलन आरक्षण के अधिकारों की रक्षा के लिए निर्णायक साबित होगा और समाज में समरसता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होगा।
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला और इसके खिलाफ उठ रहे विरोध स्वरूप सामाजिक और राजनीतिक समीकरणों को प्रभावित कर सकते हैं, जिससे देशभर में आगामी दिनों में व्यापक असर देखने को मिल सकता है।