दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के हालिया निर्णय ने एक बार फिर से सामाजिक और राजनीतिक विवादों को जन्म दे दिया है। SC/ST आरक्षण में क्रीमी लेयर के मुद्दे पर केंद्र सरकार के वकील ने स्पष्ट किया था कि इस मामले में निर्णय लेने का अधिकार संसद को है, और यह अधिकार संविधान द्वारा दिया गया है। उन्होंने यह भी बताया कि यह व्यवस्था लंबे समय से चली आ रही है और इसके खिलाफ कभी विवाद नहीं हुआ।
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट के कोलिजियम जजों की ओर से इस मुद्दे पर की गई टिप्पणी ने समाज में तात्कालिक हलचल मचा दी है। समाजशास्त्री और लेखक दिलीप मंडल ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी है। उनका कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के कोलिजियम जजों को "देश में आग लगाने का शौक़ है।
"एससी-एसटी बँटवारा केस में केंद्र सरकार के वकील ने कहा था कि इस बारे में किसी भी तरह का निर्णय करने का अधिकार संसद को है और उसे ये अधिकार संविधान से मिला है। यही व्यवस्था चली आ रही है। इस पर कभी विवाद नहीं रहा।
— Dilip Mandal (@Profdilipmandal) August 1, 2024
लेकिन सुप्रीम कोर्ट के कोलिजियम जजों को देश में आग लगाने का शौक़…
मंडल के अनुसार, इस निर्णय के परिणामस्वरूप हिंदू समाज में एक नई दरार पैदा हो गई है। उनका आरोप है कि इस फैसले ने मुख्य रूप से हिंदू जातियों को आपस में भिड़ा दिया है, जबकि एससी (अनुसूचित जाति) और एसटी (अनुसूचित जनजाति) आरक्षण में मुसलमान और ईसाई शामिल नहीं होते। इस प्रकार, उनका तर्क है कि इस विवाद ने मुख्य रूप से हिंदू जातियों के बीच संघर्ष को जन्म दिया है।
दिलीप मंडल ने यह भी आरोप लगाया कि इस निर्णय ने सामाजिक सौहार्द को तोड़ा है और समाज में तनाव बढ़ा दिया है। उनका कहना है कि इस प्रकार के निर्णय से जातिवादी विभाजन और भी गहरा हो सकता है, जो कि एक संगठित और समरस समाज के लिए हानिकारक है।
यह विवाद अब राजनीति और सामाजिक विमर्श का हिस्सा बन चुका है, और यह देखना दिलचस्प होगा कि इस पर आगे क्या कदम उठाए जाते हैं। केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट के बीच यह टकराव समाज में तनाव और विवाद को बढ़ावा दे सकता है, और इससे निपटने के लिए सभी पक्षों को सतर्क और संवेदनशील रहना होगा।
इस मुद्दे पर आगे की कार्रवाई और प्रतिक्रियाओं की निगरानी की जाएगी, क्योंकि यह मामला समाज के विभिन्न वर्गों के बीच संवाद और समझौते की आवश्यकता को उजागर करता है।