लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के प्रमुख और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने पिछले कुछ दिनों में अपने बागी रुख को और अधिक स्पष्ट कर दिया है, जिससे भारतीय जनता पार्टी (भा.ज.पा.) और उनके समर्थक चकित हैं। पासवान ने हाल ही में नरेंद्र मोदी सरकार को निशाने पर लेते हुए जातीय जनगणना की मांग की, जो एक संवेदनशील मुद्दा बन गया है और विपक्षी दलों ने भी इसे समर्थन दिया है।
भा.ज.पा. के सूत्रों के अनुसार, चिराग पासवान का यह बागी रुख पार्टी के भीतर असंतोष का कारण बन चुका है। पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं की ओर से संकेत मिल रहे हैं कि वे भी चिराग की नीतियों से असहमत हैं और भाजपा के संपर्क में हैं। इस बीच, राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि चिराग की पार्टी एक बार फिर टूट की ओर बढ़ रही है।
जानकारी के अनुसार, चिराग पासवान के नेतृत्व में पार्टी की स्थिति में गिरावट आ सकती है। कुछ वरिष्ठ नेता और सांसद भाजपा में शामिल होने की योजना बना रहे हैं। यह स्थिति पार्टी के इतिहास में एक नई मोड़ ले सकती है, क्योंकि इससे पहले भी राम विलास पासवान के निधन के बाद पार्टी में टूट हुई थी, जब चिराग के चाचा पशुपति पारस ने सभी सांसदों को अपने पक्ष में किया और केंद्र में मंत्री का पद प्राप्त किया था।
चिराग पासवान ने एनडीए से अपनी दूरी बनाए रखी है और हाल ही में केंद्र सरकार की लेटरल एंट्री भर्ती प्रणाली का भी विरोध किया है। इसके अलावा, अनुसूचित जाति (SC) और जनजाति (ST) आरक्षण में क्रीमीलेयर के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ हुए भारत बंद का भी उन्होंने समर्थन किया।
चर्चा है कि भाजपा इस स्थिति को नियंत्रित करने के लिए विशेष रणनीतियों पर काम कर रही है। केंद्रीय मंत्री अमित शाह के नेतृत्व में एक प्लान बनाया जा रहा है, जिससे चिराग पासवान और उनके समर्थकों की बढ़ती ताकत को सीमित किया जा सके। इस समय, सभी की निगाहें इस बात पर हैं कि भाजपा का यह प्लान कितनी सफल होता है और पार्टी की वर्तमान स्थिति कैसे प्रभावित होती है।