भारतीय इतिहास का अध्ययन कभी भी सरल नहीं रहा है, विशेषकर जब ब्राह्मणीकरण और ऐतिहासिक घटनाओं की काल्पनिक प्रस्तुति की बात आती है। एक विश्लेषण के अनुसार, भारतीय इतिहास के महत्वपूर्ण व्यक्तित्व और घटनाओं को ब्राह्मणीकरण के तहत किस प्रकार बदल दिया गया, इस पर गहराई से ध्यान देना आवश्यक है।
सातवीं सदी में प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्यूनसुंग ने बुद्ध की अस्थियों के विभाजन का विवरण प्रस्तुत किया था। उसने बताया कि बुद्ध की अस्थियाँ आठ राजाओं में बाँटी गईं, नौवीं भाग जले हुए अंगारों के रूप में मौर्य राजाओं को मिली और दसवीं भाग खुद ह्यूनसुंग ने प्राप्त की। इस ऐतिहासिक विवरण ने बुद्ध की अस्थियों के महत्व और उनकी सांस्कृतिक व ऐतिहासिक मूल्य को दर्शाया।
भारतीय इतिहास में गुरु दोण हुए जिन्होंने बुद्ध की अस्थियों को 8 राजाओ को बाँटा फिर 9 वा जले हुए अंगार मौर्य राजाओ और 10 वा भाग ख़ुद ले लिया। ये बात ह्यूनसुंग ने डेटेल्स में लिखा और अपनी आँखों से उन सभी स्तूपों को 7 वी सदी में देखा।
— Science Journey (@ScienceJourney2) August 4, 2024
फिर ब्राह्मणवादी व्यवस्था आयी, बुद्धिज्म की हरेक… pic.twitter.com/gQ7GGlXDxI
इसके बाद, ब्राह्मणवादी व्यवस्था का आगमन हुआ, जिसने बुद्धिज्म की ऐतिहासिक घटनाओं को काल्पनिक रूप में प्रस्तुत करना शुरू किया। विशेष रूप से, ब्राह्मणवाद ने गुरु द्रोणाचार्य और गुरु दोण की ऐतिहासिक भूमिकाओं को बदलने का प्रयास किया। गुरु दोण, जिन्होंने बुद्ध की अस्थियाँ राजाओं को बाँटी, को काल्पनिक महाभारत के गुरु द्रोण में परिवर्तित कर दिया गया। इस काल्पनिक द्रोण ने एकलव्य का अंगूठा काटने जैसी घटनाओं के लिए जिम्मेदार ठहराया, जो कि वास्तविक गुरु दोण की भूमिका से पूरी तरह भिन्न थी।
गुरु दोण, जिनका ऐतिहासिक रिकॉर्ड समानता और शांति के प्रतीक के रूप में था, काल्पनिक महाभारत में द्रोण के रूप में एक गृहयुद्ध की आग में झोंक दिया गया। इसके विपरीत, वास्तविक द्रोण, जोकि राजाओं के बीच झगड़ों को सुलझाने का प्रयास कर रहे थे, को महाभारत में एक बुरे व्यक्ति के रूप में पेश किया गया।
निष्कर्षस्वरूप, यह स्पष्ट है कि भारतीय इतिहास के सकारात्मक नायकों को ब्राह्मणीकरण के माध्यम से नकारात्मक रूप में प्रस्तुत किया गया। इस प्रक्रिया ने न केवल ऐतिहासिक सच्चाईयों को विकृत किया, बल्कि सामाजिक भेदभाव और शोषण की धारणा को भी मजबूती प्रदान की। ऐतिहासिक साक्ष्यों को काल्पनिक कहानियों के साथ बदलने से जनमानस को अपने असली धम्म और सांस्कृतिक विरासत से दूर किया गया।
आज के संदर्भ में, यह समझना आवश्यक है कि भारतीय इतिहास की गहरी समझ प्राप्त करने के लिए हमें इन काल्पनिक कहानियों और ब्राह्मणीकरण की प्रक्रिया को पहचानने और पुनः अवलोकन करने की आवश्यकता है। यही हमें हमारे ऐतिहासिक सच्चाइयों के करीब ले जाएगा और समाज में समानता व न्याय की दिशा में एक सशक्त कदम उठाने में मदद करेगा।