हाल ही में, भारतीय राजनीति में एक विवादित घटना ने जाति आधारित सवालों की सेंसिटिविटी को एक बार फिर उजागर किया है। भाजपा के हिमाचल प्रदेश से सांसद अनुराग ठाकुर ने एक सार्वजनिक मंच पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से पूछा, “जात का पता नहीं?” इस सवाल ने न केवल राजनीतिक हलकों में विवाद खड़ा किया, बल्कि भारतीय समाज की जाति व्यवस्था पर भी गहरा प्रभाव डाला।
जाति आधारित सवाल भारतीय समाज में हमेशा संवेदनशील होते हैं। अक्सर ये सवाल एक उच्च जाति के व्यक्ति द्वारा निम्न जाति के व्यक्ति को नीचा दिखाने के लिए पूछे जाते हैं। ठाकुर का सवाल भी इसी संदर्भ में देखा जा सकता है, जो अपने आप में एक अपमानजनक इशारा था। यह सवाल खासकर तब संवेदनशील हो जाता है जब इसे सत्ता के दुरुपयोग के रूप में देखा जाता है।
अखिलेश यादव की प्रतिक्रिया इस सवाल के प्रति उनकी गहरी नाराज़गी को दर्शाती है। उनका तमतमाया चेहरा साफ बताता है कि वह इस सवाल में छुपे अपमान को महसूस कर रहे थे। उनकी इस प्रतिक्रिया से यह भी साफ होता है कि जाति आधारित सवाल भारतीय राजनीति में केवल व्यक्तिगत विवाद नहीं बल्कि सामाजिक अपमान का भी कारण बन सकते हैं।
जाति का भाषा शास्त्र : अनुराग ठाकुर का 'जात का पता नहीं?’ पूछना, अखिलेश यादव का आग 🔥 सा तमतमाया चेहरा और इस सवाल का भारतीय समाज पर प्रभाव
— Dilip Mandal (@Profdilipmandal) August 7, 2024
🖋️दिलीप मंडल
“कौन जात हो”
“जात का पता नहीं”
“बाप का पता नहीं”
“कितने बाप के हो”
ये सवाल कोई भी पूछ सकता है। कोई भी। लेकिन भारतीय समाज… pic.twitter.com/isOeDIJGUi
अगर मैं बीजेपी में होता, तो किसी दलित या ओबीसी नेता को इस सवाल का सामना करने के लिए कहता, यदि यह सवाल पूरी तरह से अनिवार्य होता। ऐसा करने से कम से कम यह तो कहा जा सकता था कि पार्टी ने जाति आधारित मुद्दों को एक समान दृष्टिकोण से देखा है। लेकिन ऐसा न करने से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि इस प्रकार के सवाल सिर्फ़ व्यक्तिगत हमलों का एक हिस्सा होते हैं।
भाषाविज्ञान और संकेतविज्ञान के दृष्टिकोण से, ऐसे सवाल न केवल राजनीतिक बल्कि सामाजिक संदर्भ में भी महत्वपूर्ण होते हैं। इन सवालों का अर्थ पूछे जाने वाले व्यक्ति के जातिगत स्थान और स्थिति पर निर्भर करता है। किसी भी भाषाविज्ञानी के अनुसार, ऐसे सवालों से समाज के विभिन्न वर्गों के बीच विभाजन और असमानता को बढ़ावा मिलता है।
इस प्रकार के सवाल न केवल राजनीतिक संघर्षों को बढ़ावा देते हैं बल्कि जाति आधारित भेदभाव को भी बढ़ाते हैं। भारतीय समाज में जाति की समस्या पर विचार करते समय हमें यह समझना चाहिए कि सवाल पूछने वाला और सवाल का उद्देश्य दोनों ही महत्व रखते हैं। जाति आधारित अपमान को समझना और इसका विरोध करना भारतीय समाज के लिए आवश्यक है, ताकि हम एक अधिक समान और समावेशी समाज की ओर बढ़ सकें।