बाडमेर, 16 अगस्त: 21वीं सदी में भी जातिगत भेदभाव का साया शिक्षा जैसे पवित्र क्षेत्र में मंडरा रहा है। राजस्थान के बाडमेर जिले के धोलीनाडी रामजी का गोल स्कूल में मेगवाल समाज और अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (SC/ST) के बच्चों के साथ भेदभाव की घटनाएं सामने आई हैं, जो समाज के आधुनिक होने के दावों पर गंभीर सवाल खड़े करती हैं।
यह घटना तब उजागर हुई जब स्थानीय समुदाय के कुछ लोगों ने शिकायत की कि स्कूल में SC/ST के बच्चों को अन्य बच्चों से अलग बैठाया जाता है। यह कदम न केवल संविधान द्वारा प्रदत्त समानता के अधिकार का उल्लंघन है, बल्कि समाज में जातिगत विभाजन को और गहरा करता है।
धोलीनाडी रामजी का गोल स्कूल में यह भेदभाव केवल बैठने की व्यवस्था तक सीमित नहीं है। शिकायतों के अनुसार, इन बच्चों को पढ़ाई में भी उपेक्षित किया जा रहा है। शिक्षक उन्हें उचित मार्गदर्शन और सहयोग नहीं देते, जिससे उनकी शिक्षा प्रभावित हो रही है। ऐसे हालात में बच्चों के मानसिक विकास और भविष्य की संभावनाओं पर गहरा प्रभाव पड़ता है।
बाडमेर : यह मामला धोलीनाडी रामजी का गोल स्कूल का है मेगवाल समाज और SC ST के बच्चों के साथ में भेदभाव करते हैं और अलग बैठाते हैं तो मैं भीम आर्मी के जो भी अध्यक्ष हैं उन से हाथ जोड़कर अपील करता हूं कि ज्यादा से ज्यादा इन पर एक्शन ले। अपने समाज के प्रति आवाज उठाएं@BhimArmyChief pic.twitter.com/PgiP2ZgLxC
— 𝗥𝐚𝐦𝐞𝐬𝐡 𝗕𝐚𝐫𝐰𝐚𝐫 (@RameshBarwar17) August 16, 2024
इस मुद्दे पर भीम आर्मी के अध्यक्ष से भी अपील की गई है। स्थानीय लोगों ने उनसे अनुरोध किया है कि वे इस गंभीर मामले पर संज्ञान लें और SC/ST समुदाय के बच्चों के लिए न्याय सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक कदम उठाएं। भीम आर्मी, जो कि समाज के हाशिये पर खड़े लोगों के अधिकारों की रक्षा के लिए कार्यरत है, से उम्मीद की जा रही है कि वह इस मामले को गंभीरता से लेगी और प्रशासन पर दबाव डालेगी कि दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई हो।
जातिगत भेदभाव, जो कि एक समय समाज की गहरी जड़ों में बसा हुआ था, अब भी हमारे बीच जीवित है। यह घटना हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि क्या हम वास्तव में प्रगति की ओर बढ़ रहे हैं, या फिर कुछ जगहों पर अभी भी पुराने मानसिकता के जंजीरों में जकड़े हुए हैं।
राज्य सरकार और शिक्षा विभाग को इस मामले पर त्वरित कार्रवाई करनी चाहिए। ऐसे स्कूलों की निगरानी बढ़ाने और जातिगत भेदभाव के खिलाफ सख्त नियमों को लागू करने की आवश्यकता है, ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो।
ध्यान देने योग्य है कि इस प्रकार के भेदभाव के खिलाफ समाज के सभी वर्गों को मिलकर आवाज उठानी चाहिए। तभी एक समावेशी और समतामूलक समाज की स्थापना हो सकती है।