कुमारिल भट्ट, एक महान दार्शनिक और अद्वैत वेदांत के प्रबल समर्थक थे। वे सनातन धर्म के सच्चे सिपाही के रूप में जाने जाते हैं जिन्होंने अपने जीवन का हर क्षण धर्म और सत्य की रक्षा के लिए समर्पित किया। उनकी जीवन कथा प्रेरणादायक है, लेकिन एक गलती के कारण उनका जीवन एक दुखद मोड़ ले लिया।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
कुमारिल भट्ट का जन्म 8वीं सदी में काशी (वर्तमान वाराणसी) में हुआ था। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा और वेदों का अध्ययन काशी में ही किया। वे अद्वैत वेदांत के महान ज्ञाता और मिमांसा दर्शन के प्रबल समर्थक थे। उनके ज्ञान और तर्कशक्ति के कारण उन्हें 'भट्ट' की उपाधि दी गई थी।
बौद्ध धर्म का विरोध
कुमारिल भट्ट ने अपने जीवन का अधिकांश समय बौद्ध धर्म के तर्कों का खंडन करने में बिताया। उन्होंने बौद्ध धर्म के सिद्धांतों का खंडन करने के लिए मिमांसा दर्शन का सहारा लिया और वैदिक धर्म की श्रेष्ठता को सिद्ध करने के लिए अनेक शास्त्रार्थ किए।
एक गलती और आग का संग्राम
कुमारिल भट्ट की जीवन कथा में एक ऐसा मोड़ आया जिसने उनके जीवन को पूरी तरह से बदल दिया। उन्होंने बौद्ध धर्म के गूढ़ रहस्यों को जानने के लिए एक बार बौद्ध भिक्षु के रूप में खुद को प्रस्तुत किया। वे एक बौद्ध मठ में प्रवेश कर गए और वहां उन्होंने बौद्ध धर्म के सिद्धांतों का अध्ययन किया।
जब उनका यह छल प्रकट हुआ, तब उन्होंने अपनी गलती का प्रायश्चित करने का निर्णय लिया। कुमारिल भट्ट ने स्वयं को दोषी मानते हुए, अपने शरीर को अग्नि में समर्पित कर दिया। उन्होंने अपने शिष्यों को बुलाया और अपने शरीर को चिता पर रखकर आग लगा दी। इस कृत्य के माध्यम से उन्होंने अपनी गलती का प्रायश्चित किया और धर्म की रक्षा के लिए अपने जीवन का बलिदान दिया।
उनकी शिक्षाएं और योगदान
कुमारिल भट्ट ने अपने जीवन में अनेक महत्वपूर्ण ग्रंथों की रचना की। उनके द्वारा रचित 'तंत्रवार्तिक' और 'श्लोकवार्तिक' मिमांसा दर्शन के प्रमुख ग्रंथ हैं। उन्होंने अद्वैत वेदांत और मिमांसा दर्शन के सिद्धांतों को सरल और स्पष्ट रूप में प्रस्तुत किया, जिससे आने वाली पीढ़ियों को उनके ज्ञान का लाभ मिला।
निष्कर्ष
कुमारिल भट्ट का जीवन धर्म, सत्य और समर्पण का उत्कृष्ट उदाहरण है। उन्होंने अपनी गलती का प्रायश्चित कर यह सिद्ध कर दिया कि सच्चे धर्म योद्धा अपनी गलतियों को स्वीकार कर उनसे सीखते हैं। उनका जीवन आज भी हमें धर्म और सत्य के मार्ग पर अडिग रहने की प्रेरणा देता है। कुमारिल भट्ट की कथा हमें यह सिखाती है कि जीवन में कितनी भी कठिनाइयाँ क्यों न आएं, हमें अपने धर्म और सिद्धांतों के प्रति सच्चे और निष्ठावान रहना चाहिए।