गरुड़ पुराण, हिंदू धर्म के प्राचीन ग्रंथों में से एक है, जो मृत्यु, अंतिम संस्कार और मृत्यु के बाद के जीवन के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान करता है। इस ग्रंथ में स्वर्ग और नर्क के बारे में भी बताया गया है, और यह निर्धारित करने की प्रक्रिया के बारे में भी बताया गया है कि मृत्यु के बाद किसी व्यक्ति को स्वर्ग या नर्क में जाना होगा या नहीं।
गरुड़ पुराण के अनुसार, मृत्यु के बाद व्यक्ति की आत्मा को यमलोक ले जाया जाता है, जो मृत्यु के देवता यमराज का निवास स्थान है। यमराज के दरबार में, चित्रगुप्त, कर्मों का लेखा-जोखा रखने वाले देवता, व्यक्ति के पिछले जीवन में किए गए सभी कर्मों का हिसाब-किताब रखते हैं।
चित्रगुप्त के हिसाब-किताब के आधार पर, यमराज यह निर्णय लेते हैं कि व्यक्ति को स्वर्ग जाना चाहिए या नर्क। यदि व्यक्ति के पुण्य कर्म अधिक हैं, तो उसे स्वर्ग भेजा जाता है। यदि व्यक्ति के पाप कर्म अधिक हैं, तो उसे नर्क भेजा जाता है।
गरुड़ पुराण में यह भी बताया गया है कि यमराज का निर्णय अंतिम और निर्णायक होता है। किसी भी व्यक्ति के पास इस निर्णय पर सवाल उठाने या इसे बदलने का अधिकार नहीं है।
स्वर्ग को एक सुखद और आनंदमय स्थान के रूप में वर्णित किया गया है, जहाँ व्यक्ति को सभी सुख-सुविधाएँ प्राप्त होती हैं। नर्क को एक दुखद और भयानक स्थान के रूप में वर्णित किया गया है, जहाँ व्यक्ति को विभिन्न प्रकार की पीड़ाएँ सहन करनी पड़ती हैं।
गरुड़ पुराण का यह संदेश है कि मनुष्य को अपने जीवन में अच्छे कर्म करना चाहिए ताकि वह मृत्यु के बाद स्वर्ग जा सके। यदि मनुष्य पाप कर्म करता है, तो उसे मृत्यु के बाद नर्क जाना पड़ता है।
गरुड़ पुराण के अनुसार, मृत्यु के बाद व्यक्ति के स्वर्ग या नर्क जाने का निर्णय यमराज द्वारा लिया जाता है। यह निर्णय व्यक्ति के पिछले जीवन में किए गए कर्मों के आधार पर लिया जाता है। यमराज का निर्णय अंतिम और निर्णायक होता है।