पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान विष्णु और गरुड़ के बीच एक घटना हुई थी जहाँ भगवान विष्णु ने गरुड़ पर अपना सुदर्शन चक्र चलाया था।
यह घटना तब हुई जब गरुड़ अपनी माँ विनता को कैद से मुक्त कराने के लिए स्वर्ग गए थे। विनता को राजा कश्यप की दूसरी पत्नी, कद्रू द्वारा कैद कर लिया गया था। गरुड़ ने कद्रू के पुत्रों, सर्पों को पराजित किया और अपनी माँ को मुक्त कराया।
इसके बाद, गरुड़ अमृत प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन में शामिल हुए। समुद्र मंथन से अमृत प्राप्त हुआ, लेकिन इसे देवताओं और असुरों के बीच विभाजित किया जाना था। गरुड़ को देवताओं का प्रतिनिधि चुना गया।
जब गरुड़ अमृत लेकर स्वर्ग लौट रहे थे, तो राहु नामक एक दानव ने उनसे अमृत छीनने का प्रयास किया। गरुड़ ने राहु का सिर काट दिया, लेकिन राहु का सिर अमृत की बूंदों को छू चुका था, इसलिए वह अमर हो गया।
इस घटना से भगवान विष्णु क्रोधित हो गए और उन्होंने गरुड़ पर अपना सुदर्शन चक्र चलाया। गरुड़ घायल हो गए और वे क्षमा के लिए भगवान विष्णु के पास गए।
भगवान विष्णु ने गरुड़ को क्षमा कर दिया और उन्हें अपना वाहन बना लिया। गरुड़ तब से भगवान विष्णु के वफादार भक्त और साथी रहे हैं।
यह घटना भगवान विष्णु और गरुड़ के बीच अटूट प्रेम और भक्ति का प्रतीक है। यह हमें सिखाता है कि क्रोध एक विनाशकारी शक्ति है और हमें हमेशा क्षमा और समझदारी का रास्ता चुनना चाहिए।
यह घटना हमें निम्नलिखित बातें भी सिखाती है:
- माता-पिता के प्रति प्रेम और समर्पण का महत्व
- बुराई पर अच्छाई की जीत
- क्षमा और समझदारी का महत्व
- भगवान और उनके भक्तों के बीच अटूट प्रेम
यह घटना हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण घटना है और इसे अक्सर भगवान विष्णु और गरुड़ की भक्ति के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है।