उत्तर प्रदेश में एक सरकारी टीचर द्वारा किए गए अपमानजनक व्यवहार का वीडियो तेजी से वायरल हो रहा है, जिसने शिक्षा व्यवस्था में गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। वीडियो में टीचर का यह बयान सामने आया है कि अगर लेट आने पर इतनी सख्ती दिखानी है, तो पब्लिक स्कूल में जाएं और मिड डे मील न खाएं, क्योंकि पूरे दिन में दो सौ रुपये भी नहीं कमाते हैं। यह टिप्पणी टीचर ने अपने विद्यार्थियों और उनके अभिभावकों के सामने की है, जो अब एक बड़ा मुद्दा बन चुका है।
वीडियो में दिखाया गया है कि टीचर ने स्कूल में बच्चों की उपस्थिति को लेकर तीखी टिप्पणी की और कहा कि अगर अभिभावकों को इतनी ही शिकायतें हैं, तो उन्हें पब्लिक स्कूल में जाकर देखना चाहिए, जहां मिड डे मील की सुविधा भी उपलब्ध नहीं है। यह टिप्पणी न केवल अभिभावकों बल्कि बच्चों के अधिकारों की भी अनदेखी करती है।
“इतने तेवर हैं तो पब्लिक स्कूल में जाओ…यहाँ मिड डे मील मत खाओ…पूरे दिन में दो सौ रुपये नहीं कमाते..तुम्हारे इतने तेवर हैं!”
— Neha Singh Rathore (@nehafolksinger) July 27, 2024
(बाक़ी ख़ुद देख लीजिए)
कांवड़ के लिये स्कूल बंद कराने वालों की सरकार में सरकारी स्कूल बच्चों के लिए प्रताड़ना शिविर बन गये हैं.
दूसरी बात ये कि पब्लिक… pic.twitter.com/lLuQuZYe0k
मिड डे मील कार्यक्रम की शुरुआत का उद्देश्य गरीब और जरूरतमंद बच्चों को पौष्टिक भोजन प्रदान करना है, ताकि उनकी शिक्षा में कोई बाधा उत्पन्न न हो। यह एक अधिकार है, न कि किसी अध्यापक की बपौती। सरकारी स्कूलों में बच्चों के लिए इस तरह का भोजन सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी सरकार की है, और इसका सम्मान किया जाना चाहिए।
हाल ही में, कांवड़ यात्रा के कारण स्कूलों के बंद होने को लेकर भी विवाद उठे हैं। इससे साफ होता है कि सरकारी स्कूल बच्चों के लिए प्रताड़ना शिविर बन चुके हैं, जहां शिक्षा के बजाय अन्य मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है। इससे यह भी प्रतीत होता है कि शिक्षा व्यवस्था में बच्चों के प्रति संवेदनशीलता की कमी है।
अब यह सवाल उठता है कि बच्चों के साथ दुर्व्यवहार करने वाले अध्यापकों के खिलाफ सख्ती कब लागू की जाएगी? क्या इस प्रकार की टिप्पणियों और व्यवहार को नजरअंदाज किया जाएगा, या फिर शिक्षा व्यवस्था में सुधार लाने के लिए ठोस कदम उठाए जाएंगे?
यह घटना शिक्षा प्रणाली में गहरी चिंताओं को जन्म देती है और यह दर्शाती है कि सरकार को चाहिए कि वह अपने नीतियों में बदलाव लाकर बच्चों के अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करे और ऐसे अध्यापकों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करे जो बच्चों के अधिकारों और शिक्षा के प्रति असंवेदनशील हैं।