नई दिल्ली, 8 जुलाई 2024 - भारत सरकार ने आपराधिक कानून में महत्वपूर्ण बदलाव करते हुए औपनिवेशिक युग के कानूनों को रद्द कर दिया है। यह निर्णय देश के कानूनी ढांचे में एक बड़ा परिवर्तन लाने वाला है, जिसे लंबे समय से आवश्यक माना जा रहा था।
केंद्रीय कानून मंत्री ने इस ऐतिहासिक फैसले की घोषणा करते हुए कहा, "यह बदलाव हमारी न्याय प्रणाली को आधुनिक बनाने और नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के दौरान बनाए गए कई कानून आज के सामाजिक और कानूनी संदर्भ में अप्रासंगिक हो चुके हैं।"
प्रमुख बदलाव
1. धारा 124A का उन्मूलन: राजद्रोह के आरोपों के लिए भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 124A को समाप्त कर दिया गया है। इसे व्यक्तिगत स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बढ़ावा देने के लिए हटाया गया है।
2. धारा 377 का पुनर्विचार: यौन अपराधों से संबंधित धारा 377 में संशोधन किया गया है, जिससे एलजीबीटीक्यू+ समुदाय के अधिकारों को अधिक मान्यता दी गई है।
3. धारा 497 का उन्मूलन: व्यभिचार (अडल्टरी) को अपराध की श्रेणी से हटाकर एक नागरिक विवाद के रूप में देखा जाएगा।
4. धारा 309 का उन्मूलन: आत्महत्या के प्रयास को अब अपराध नहीं माना जाएगा। इसके स्थान पर, आत्महत्या के प्रयास करने वाले लोगों को मानसिक स्वास्थ्य सहायता प्रदान की जाएगी।
प्रतिक्रिया
कानूनी विशेषज्ञों और मानवाधिकार संगठनों ने इस कदम का स्वागत किया है। सुप्रीम कोर्ट के एक पूर्व न्यायाधीश ने कहा, "यह एक बहुत ही सकारात्मक कदम है, जो हमारे देश के कानूनी ढांचे को अधिक समावेशी और मानवीय बनाएगा।"
विपक्षी दलों ने भी इस बदलाव का समर्थन किया है, हालांकि कुछ ने सरकार से और अधिक पारदर्शिता और जन भागीदारी की मांग की है।
भविष्य की दिशा
इस बदलाव के साथ, सरकार ने संकेत दिया है कि वे न्यायिक सुधार की प्रक्रिया को जारी रखेंगे। नागरिक समाज और कानूनी विशेषज्ञों से सलाह लेकर आगे के सुधारों की योजना बनाई जाएगी।
इस कदम से भारतीय न्याय प्रणाली में एक नया युग शुरू होने की संभावना है, जो न केवल कानून के अनुपालन को सुनिश्चित करेगा बल्कि लोगों के अधिकारों की रक्षा भी करेगा।