लखनऊ: City Montessori School (CMS) में पिछले 15 सालों से शिक्षक के रूप में कार्यरत कुलदीप तिवारी ने स्कूल प्रशासन पर गंभीर आरोप लगाए हैं। तिवारी का कहना है कि उन्हें धार्मिक प्रतीकों, जैसे तिलक, शिखा और कलावा के कारण बर्खास्त कर दिया गया है। यदि ये आरोप सही साबित होते हैं, तो यह मामला शिक्षा क्षेत्र में एक बड़ा विवाद खड़ा कर सकता है।
कुलदीप तिवारी ने मीडिया को जानकारी दी कि स्कूल प्रशासन ने हाल ही में उन्हें बर्खास्त कर दिया, और इसके पीछे उन्होंने जो वजह बताई है, वह उनकी धार्मिक पहचान से जुड़ी है। तिवारी के अनुसार, उन्होंने अपनी धार्मिक पहचान को प्रदर्शित करने के लिए तिलक लगाने, शिखा रखने और कलावा बांधने की आदत बनाए रखी थी। उनका दावा है कि इन धार्मिक प्रतीकों के कारण स्कूल प्रशासन ने उनके खिलाफ एक नकारात्मक रवैया अपनाया और अंततः उन्हें नौकरी से हटा दिया।
इस आरोप की गंभीरता को देखते हुए, शिक्षा क्षेत्र में यह सवाल उठ रहा है कि धार्मिक प्रतीकों को लेकर स्कूलों का रवैया क्या होना चाहिए। क्या किसी शिक्षक के धार्मिक प्रतीकों के आधार पर उसे बर्खास्त करना सही है? क्या यह धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन नहीं है? ये प्रश्न आज एक महत्वपूर्ण चर्चा का विषय बन गए हैं।
कुलदीप तिवारी का आरोप है कि उन्हें तिलक लगाने, शिखा रखने, कलावा बांधने के कारण स्कूल से हटा दिया गया। मामला लखनवी के City Montessori school (CMS) स्कूल का। पिछले 15 सालों से स्कूल में
— Shubham Shukla (@ShubhamShuklaMP) July 25, 2024
शिक्षक थे कुलदीप तिवारी।
ये आरोप अगर सही हैं तो बेहद गंभीर हैं। शिखा, तिलक, कलावा, रुद्राक्ष से… pic.twitter.com/8EMucDotTj
CMS स्कूल प्रशासन ने अभी तक इस आरोप पर अपनी आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है। हालांकि, स्कूल के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि मामले की जांच की जा रही है और उचित कदम उठाए जाएंगे। इस समय स्कूल प्रशासन ने तिवारी के आरोपों को लेकर कोई विस्तृत बयान जारी नहीं किया है।
शिक्षा के क्षेत्र में धार्मिक समानता और विविधता के मुद्दे पर यह मामला महत्वपूर्ण हो सकता है। अगर कुलदीप तिवारी के आरोप सही साबित होते हैं, तो यह सवाल उठता है कि क्या स्कूल प्रशासन को किसी शिक्षक की धार्मिक पहचान के आधार पर बर्खास्त करने का अधिकार है? क्या यह धार्मिक भेदभाव की एक रूपरेखा है?
समाज में बढ़ती धार्मिक संवेदनशीलता और विविधता के बीच, यह मामला यह दर्शाता है कि हमारे संस्थानों को धार्मिक पहचान को सम्मान देने और उसे शिक्षा के क्षेत्र में एक समान और निष्पक्ष दृष्टिकोण से देखने की आवश्यकता है। कुलदीप तिवारी का मामला एक महत्वपूर्ण उदाहरण हो सकता है जो इस दिशा में बदलाव की आवश्यकता को उजागर करता है।