इस्लाम धर्म का नया साल, जिसे हिजरी संवत के नाम से भी जाना जाता है, मुहर्रम के महीने से शुरू होता है। मुहर्रम इस्लामी कैलेंडर का पहला महीना है और इसे इस्लाम धर्म में अत्यधिक महत्व दिया जाता है। इस महीने की शुरुआत इस्लामिक नववर्ष के साथ होती है, जो मुसलमानों के लिए एक विशेष और पवित्र समय होता है।
मुहर्रम का महत्व
मुहर्रम का महीना इस्लाम धर्म में चार पवित्र महीनों में से एक है। इस महीने में युद्ध और हिंसा को निषेध माना गया है। मुहर्रम का सबसे महत्वपूर्ण दिन आशूरा होता है, जो इस महीने की दसवीं तारीख को मनाया जाता है। आशूरा के दिन को विशेष रूप से शिया मुसलमानों द्वारा हजरत इमाम हुसैन और उनके साथियों की शहादत की याद में मनाया जाता है। हजरत इमाम हुसैन, जो पैगंबर मोहम्मद के नवासे थे, ने कर्बला की लड़ाई में अन्याय के खिलाफ संघर्ष करते हुए शहादत प्राप्त की थी।
मुहर्रम की कहानी
मुहर्रम का सबसे प्रमुख और महत्वपूर्ण प्रसंग कर्बला की लड़ाई से जुड़ा है। यह लड़ाई 680 ईस्वी में इराक के कर्बला में हुई थी। यजीद इब्न मुआविया, जो उमय्यद वंश का खलीफा था, ने हजरत इमाम हुसैन से अपनी बैयत (आज्ञाकारिता की शपथ) लेने का आदेश दिया था, जिसे हुसैन ने अन्यायपूर्ण मानते हुए ठुकरा दिया था। इसके परिणामस्वरूप, यजीद की सेना ने हुसैन और उनके अनुयायियों को कर्बला के मैदान में घेर लिया और उन्हें पानी से वंचित कर दिया। इसके बाद, 10 मुहर्रम के दिन हुसैन और उनके 72 साथियों ने वीरतापूर्वक लड़ते हुए शहादत प्राप्त की।
आशूरा का महत्व
आशूरा का दिन विशेष रूप से शिया मुसलमानों के लिए शोक और स्मरण का दिन होता है। इस दिन वे इमाम हुसैन और उनके साथियों की शहादत को याद करते हुए मातम मनाते हैं और ताजिया जुलूस निकालते हैं। सुन्नी मुसलमान भी इस दिन को महत्वपूर्ण मानते हैं और इसे रोजा रखकर मनाते हैं। उनके लिए यह दिन नूह की नाव के सुरक्षित उतरने और मूसा के लाल सागर से पार होने जैसी अन्य महत्वपूर्ण घटनाओं से भी जुड़ा है।