देश के प्रमुख धार्मिक और राजनीतिक नेता बाबा ने अपनी स्थिति को और भी मजबूत कर दिया है, और इस बार उनका तेवर पहले से कहीं अधिक स्पष्ट है। हाल ही में, बाबा ने अपनी सत्ता और प्रभाव का प्रमाण देते हुए गडकरी और चाणक्य जैसे प्रमुख नेताओं को भी नमस्ते करना बंद कर दिया है। इस कदम ने राजनीतिक गलियारों में एक नई हलचल पैदा कर दी है।
बाबा की इस स्थिति को 'अंगद की तरह जमा हुआ पांव' कहा जा सकता है। उनका प्रभाव अब इतना मजबूत है कि उन्हें उखाड़ने की ताकत किसी में भी नहीं दिख रही है। इससे पहले, केवल गडकरी ही थे जिन्होंने बाबा के प्रति नमस्ते की परंपरा को तोड़ा था। लेकिन अब बाबा ने साहेब और चाणक्य जैसे महत्वपूर्ण व्यक्तियों को भी नमस्ते करना बंद कर दिया है। यह कदम उनकी सत्ता के प्रति आत्म-निर्भरता और आत्म-संप्रभुता का संकेत है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बाबा की यह रणनीति उनकी मजबूत स्थिति को दर्शाती है। संघ और जनता के समर्थन से उन्होंने यह संदेश दिया है कि वे किसी भी दबाव या चुनौती से प्रभावित नहीं होंगे। बाबा के तेवर स्पष्ट हैं: वे अपनी स्थिति को लेकर पूरी तरह से आत्म-संतुष्ट और दृढ़ हैं। उनकी यह स्थिति संघ और उनके समर्थकों के लिए एक मजबूत संदेश है कि वे किसी भी स्थिति में झुकने के लिए तैयार नहीं हैं।
इसके अलावा, इस कदम ने गडकरी, चाणक्य, और साहेब जैसे प्रमुख नेताओं के साथ बाबा के रिश्तों में खटास भी पैदा की है। राजनीतिक हलकों में इस मुद्दे पर कई चर्चाएँ चल रही हैं, और यह देखा जाएगा कि आने वाले दिनों में इसका प्रभाव किस हद तक महसूस किया जाएगा।
बाबा की शक्ति और प्रभाव को लेकर लोगों की राय भी विभिन्न हैं। कुछ लोग इसे उनके मजबूत नेतृत्व का संकेत मानते हैं, जबकि अन्य इसे एक प्रकार की राजनीतिक चाल के रूप में देख रहे हैं। हालांकि, यह स्पष्ट है कि बाबा की स्थिति वर्तमान में किसी भी प्रकार के चुनौती का सामना करने के लिए पूरी तरह तैयार है और उनकी इस स्थिति ने राजनीतिक परिदृश्य को एक नया मोड़ दे दिया है।