पटना: बिहार में सत्ताधारी जनता दल (यूनाइटेड) के सांसद देवेश चंद्र ठाकुर ने हाल ही में एक विवादास्पद बयान देकर राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है। ठाकुर ने सार्वजनिक रूप से कहा है कि वह यादव, मुसलमान और कुशवाहा समुदाय के लोगों का काम नहीं करेंगे क्योंकि उन्होंने उन्हें वोट नहीं दिया। उनके इस बयान ने राज्य की राजनीति में हड़कंप मचा दिया है और आम जनता के बीच गहरा आक्रोश पैदा कर दिया है।
देवेश चंद्र ठाकुर का यह बयान सोशल मीडिया पर वायरल हो गया है और इसे लेकर आलोचनाओं का एक दौर शुरू हो गया है। सांसद का यह बयान सीधे तौर पर बिहार की सामाजिक संरचना और जातीय समीकरणों को चोट पहुंचाता है। ठाकुर ने कहा, "मैं यादव, मुसलमान और कुशवाहा का काम नहीं करूँगा क्योंकि उन्होंने मुझे वोट नहीं किया।" यह बयान उनकी राजनीतिक प्राथमिकताओं और जनता के प्रति उनके दृष्टिकोण को स्पष्ट रूप से दर्शाता है।
सांसद के इस बयान के बाद बिहार की राजनीति में उनकी कड़ी आलोचना हो रही है। विपक्षी दलों ने उनके बयान को जनता का अपमान करार दिया है और मांग की है कि ठाकुर माफी मांगें। विपक्षी नेताओं ने कहा कि यह बयान लोकतंत्र और समाज के मूलभूत सिद्धांतों के खिलाफ है। उनका कहना है कि एक जनप्रतिनिधि का कर्तव्य होता है कि वह अपने क्षेत्र के सभी लोगों के लिए काम करे, न कि किसी विशेष समुदाय के प्रति पक्षपाती हो।
हरामज़ादा साला रद्दी बिहार का आदमी है"
— Kanchana Yadav (@Kanchanyadav000) July 27, 2024
यह JDU के सांसद देवेश चंद्र ठाकुर बोल रहे हैं। हाँ वही जो कहे थे कि "मैं यादव, मुसलमान और कुशवाहा का काम नहीं करूँगा क्योंकि उन्होंने मुझे वोट नहीं किया "
यह बिहार की जनता का अपमान कर रहे हैं JDU नेता जिनको बिहार की जनता ने चुनकर भेजा है।… pic.twitter.com/3gvVD4jeyo
सत्ता पक्ष ने भी इस मामले में चुप्पी साध रखी है, लेकिन जनता और मीडिया में इस मुद्दे को लेकर गुस्सा साफ तौर पर देखा जा सकता है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि देवेश चंद्र ठाकुर का यह बयान चुनावी राजनीति में जातीय ध्रुवीकरण को बढ़ावा देने का प्रयास हो सकता है, जो कि बिहार जैसी सामाजिक विविधता वाले राज्य के लिए खतरनाक हो सकता है।
सांसद देवेश चंद्र ठाकुर के बयान पर बिहार की जनता का आक्रोश बढ़ता जा रहा है। लोगों का कहना है कि ऐसे बयान बिहार की सामाजिक ताना-बाना को नुकसान पहुंचा सकते हैं और जातीय भेदभाव को बढ़ावा दे सकते हैं। यह भी सवाल उठ रहा है कि क्या सत्ता में बैठे लोगों को अपने जनप्रतिनिधियों के असंवेदनशील और विभाजनकारी बयानों को नियंत्रित करने की जिम्मेदारी लेनी चाहिए।
आगे चलकर देखना होगा कि इस विवाद पर पार्टी और सांसद के खिलाफ क्या कदम उठाए जाते हैं और क्या देवेश चंद्र ठाकुर इस पर कोई सफाई पेश करते हैं। फिलहाल, उनका बयान बिहार की राजनीति में एक नई बहस का मुद्दा बन चुका है।