यूपी की योगी सरकार ने कांवड़ यात्रा के दौरान सुरक्षा और व्यवस्था बनाए रखने के लिए एक नया आदेश जारी किया था। इसके तहत, कांवड़ यात्रा के मार्ग पर आने वाले सभी होटल, ढाबे और ठेले अपने दुकानों पर बड़े अक्षरों में अपना नाम और मोबाइल नंबर प्रदर्शित करने को कहा गया था। यह आदेश कांवड़ियों की सुरक्षा को ध्यान में रखकर दिया गया था, लेकिन विपक्ष ने इसे धार्मिक भेदभाव का मुद्दा बना दिया।
आज इस मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में हुई, जहाँ अदालत ने इस आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि दुकानदारों को अपनी पहचान उजागर करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने कहा कि होटल मालिकों को केवल भोजन के प्रकार—शाकाहारी या मांसाहारी—की जानकारी देना आवश्यक है, न कि अपने नाम और नंबर की प्रदर्शनी। पुलिस का इस आदेश को लागू करने का तरीका संविधान और कानून के खिलाफ है और यह भेदभावपूर्ण है।
सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई के दौरान जस्टिस एसवी भट्टी ने केरल के एक शाकाहारी भोजनालय का उदाहरण पेश किया। उन्होंने बताया कि जब वे केरल में तैनात थे, तो वे एक मुस्लिम द्वारा चलाए जा रहे शाकाहारी होटल में नियमित रूप से जाते थे। जस्टिस भट्टी ने कहा कि यह होटल अंतरराष्ट्रीय मानकों का पालन करता था और खाद्य सुरक्षा व स्वच्छता के मामले में उच्च मानक स्थापित करता था। उन्होंने इस अनुभव को साझा करते हुए कहा कि खाद्य गुणवत्ता और सुरक्षा के मामलों में धार्मिक पहचान से अधिक महत्वपूर्ण है मानक और स्वच्छता।