भारत की पवित्र ग्रंथों और धार्मिक कथाओं में देवी-देवताओं की कहानियाँ सदियों से जनमानस के बीच चर्चित रही हैं। इन्हीं कहानियों में से एक है यमराज के पृथ्वी पर जन्म लेने की कथा। यमराज, जिन्हें मृत्यु के देवता के रूप में जाना जाता है, की यह कथा बेहद रोचक और शिक्षाप्रद है।
कहानी की शुरुआत स्वर्गलोक से होती है, जहाँ यमराज अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए आत्माओं का न्याय कर रहे थे। एक दिन यमराज से एक भूल हो गई। उन्होंने एक साधु की आत्मा को उसके निर्धारित समय से पहले ही स्वर्ग बुला लिया। साधु ने यमराज से पूछा, "हे यमराज, आपने मुझे समय से पहले क्यों बुलाया है? मेरी तपस्या अभी पूरी नहीं हुई है।"
यमराज ने अपनी गलती का एहसास किया और देवताओं से परामर्श लिया। ब्रह्मा, विष्णु और महेश सभी ने यमराज को सुझाव दिया कि उन्हें अपनी गलती सुधारने के लिए पृथ्वी पर जन्म लेना होगा। यमराज ने देवताओं की बात मानी और एक सामान्य मनुष्य के रूप में पृथ्वी पर जन्म लिया।
पृथ्वी पर जन्म लेने के बाद यमराज ने एक सामान्य जीवन जीते हुए अपनी गलती को सुधारने के उपाय खोजे। उन्होंने उस साधु को ढूंढा और उसकी तपस्या को पूरा करने में मदद की। इस दौरान यमराज ने कई कठिनाइयों का सामना किया और उन्हें अहसास हुआ कि मनुष्य जीवन कितना कठिन और संघर्षपूर्ण होता है।
इस अनुभव ने यमराज को गहरा सबक सिखाया। जब यमराज वापस स्वर्गलोक लौटे, तो उन्होंने आत्माओं के न्याय में अधिक संवेदनशीलता और सतर्कता बरतनी शुरू कर दी। उन्होंने समझा कि गलती किसी से भी हो सकती है, चाहे वह देवता ही क्यों न हो। लेकिन महत्वपूर्ण यह है कि गलती को स्वीकार कर उसे सुधारने का प्रयास किया जाए।
इस प्रकार, यमराज की यह कथा हमें सिखाती है कि गलतियाँ सभी से होती हैं, चाहे वह कितने ही महान या शक्तिशाली क्यों न हों। लेकिन इन गलतियों से सीख लेकर और उन्हें सुधारने का प्रयास करना ही सच्ची समझदारी है।