हाल ही में कांग्रेस पार्टी के नेताओं द्वारा महापुरुषों के नाम पर वोट मांगने की कोशिशों ने एक बार फिर उनके दोहरे चेहरे को उजागर किया है। इस बार चर्चा का केंद्र बन गई है अमेठी का नामकरण विवाद, जो पहले कांग्रेस और मायावती के बीच एक गंभीर मुद्दा बन चुका था।
सालों पहले, जब मायावती उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री थीं, उन्होंने अमेठी का नाम बदलकर छत्रपति शाहूजी महाराज नगर रखने का प्रस्ताव पेश किया था। उनका मानना था कि छत्रपति शाहूजी महाराज जैसे महापुरुष के नाम से इस क्षेत्र को सम्मानित किया जाना चाहिए। परंतु कांग्रेस ने इस प्रस्ताव का विरोध किया और अमेठी का नाम राजीव गांधी के नाम पर रखने की मांग की। इस मुद्दे पर कांग्रेस ने दावा किया था कि राजीव गांधी के नाम से अमेठी को सम्मान मिलेगा, और यह उनकी नीतियों और योगदान को मान्यता देने का एक तरीका होगा।
इस विवाद के दौरान कांग्रेस ने राजीव गांधी को छत्रपति शाहूजी महाराज से भी बड़ा बताया, जिससे यह स्पष्ट हो गया कि उनके लिए अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं महापुरुषों के सम्मान से ऊपर हैं। इस मुद्दे ने न केवल कांग्रेस की प्राथमिकताओं की ओर इशारा किया, बल्कि यह भी दर्शाया कि वे किस प्रकार से अपनी राजनीतिक लाभ की खातिर इतिहास और महापुरुषों के नामों का उपयोग करते हैं।
जब बहन मायावती जी ने कांग्रेस में अमेठी का नाम छत्रपति शाहूजी महाराज नगर कर दिया था तब यही कांग्रेस उसको राजीव गांधी के नाम पर रखना चाहती थी।
— John Wick (@JohnWick0876) July 29, 2024
उस घमासान में राहुल गांधी को छत्रपति शाहूजी महाराज से भी बड़ा बता दिया गया था।
आज यही कांग्रेस दिन रात हमारे मसीहों का नाम लेती है।… pic.twitter.com/LfaAkuCJDJ
आज, वही कांग्रेस पार्टी उन महापुरुषों के नामों का बार-बार उल्लेख करती नजर आती है जिनका पहले विरोध किया गया था। चुनावी समय में महापुरुषों के नाम का उल्लेख करके कांग्रेस ने अपने वास्तविक इरादों को छिपाने का प्रयास किया है। इस तरह के दोगलेपन से कांग्रेस की असली नीतियों और उनके प्रति जनता के विश्वास को प्रभावित किया है।
राजनीतिक विमर्श में महापुरुषों के नामों का महत्व बढ़ा है, लेकिन कांग्रेस के इस व्यवहार से साफ हो जाता है कि जब भी सत्ता की बात आती है, उनके लिए महापुरुषों का नाम केवल एक चुनावी औजार बन जाता है। इससे जनता को सतर्क रहने की आवश्यकता है और उन्हें समझना होगा कि कौन वास्तव में उनके आदर्शों और मान्यताओं की कदर करता है।
राजनीतिक परिदृश्य में इस तरह की घटनाएं केवल जनता को सोचने पर मजबूर करती हैं कि क्या सच्ची श्रद्धांजलि देना केवल चुनावी लाभ के लिए है, या यह किसी की निष्ठा और सम्मान का असली प्रतीक है।