चातुर्मास की शुरुआत: जानिए चार महीने तक क्यों नहीं होते हैं विवाह और अन्य शुभ कार्य



हिंदू धर्म में चातुर्मास का विशेष महत्व है। इस वर्ष चातुर्मास का आरंभ 16 जुलाई 2024 से हो रहा है और यह 10 नवंबर 2024 तक चलेगा। इस अवधि के दौरान विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन, नामकरण जैसे सभी मांगलिक कार्यों पर रोक लग जाती है। आइए जानते हैं चातुर्मास का महत्व और इसके पीछे के धार्मिक और पौराणिक कारण।

चातुर्मास का महत्व:

चातुर्मास का अर्थ है चार महीने। यह आषाढ़ शुक्ल एकादशी से लेकर कार्तिक शुक्ल एकादशी तक चलता है। इस समय को भगवान विष्णु की विशेष उपासना का समय माना जाता है। चातुर्मास के दौरान भगवान विष्णु क्षीरसागर में योगनिद्रा में रहते हैं, जिसे देवशयनी एकादशी कहा जाता है। चार महीनों बाद, देवउठनी एकादशी को भगवान विष्णु निद्रा से जागते हैं। इस अवधि को धार्मिक दृष्टि से विशेष माना जाता है और इस दौरान मांगलिक कार्यों पर रोक होती है।

धार्मिक कारण:

चातुर्मास को भगवान विष्णु के विश्राम का समय माना जाता है। इसलिए, इस अवधि में किसी भी शुभ कार्य का आयोजन नहीं किया जाता है ताकि भगवान विष्णु की उपासना में कोई बाधा न आए। इसके साथ ही, इस समय में साधु-संत और तपस्वी भी एक स्थान पर रुककर तपस्या और साधना करते हैं। यह समय व्रत, उपवास, और धार्मिक अनुष्ठानों के लिए उपयुक्त माना जाता है।

पौराणिक कारण:

चातुर्मास के पीछे एक पौराणिक कथा भी है। कहते हैं कि जब समुद्र मंथन हुआ था, तब देवताओं और असुरों ने मिलकर अमृत की प्राप्ति के लिए मंथन किया था। मंथन के दौरान, भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण करके अमृत का वितरण किया था। इसके बाद, भगवान विष्णु ने क्षीरसागर में योगनिद्रा धारण की थी। तब से चातुर्मास की परंपरा चली आ रही है।

प्राकृतिक कारण:

चातुर्मास का समय वर्षा ऋतु के दौरान आता है। इस समय मौसम में नमी और ठंडक होती है। कृषि कार्यों के लिए यह समय उत्तम होता है और इस समय खेती-बाड़ी में व्यस्तता रहती है। इस मौसम में लंबी यात्राएं और बाहरी गतिविधियाँ भी कठिन होती हैं, इसलिए भी मांगलिक कार्यों पर रोक लगाई जाती है।

आध्यात्मिक लाभ:

चातुर्मास को आत्मसंयम, साधना, और साधुवृत्ति के लिए उत्तम माना जाता है। इस समय में उपवास, पूजा, पाठ, और ध्यान करने से आध्यात्मिक उन्नति होती है। यह समय खुद को ईश्वर की आराधना में समर्पित करने का है।

चातुर्मास के दौरान के नियम:

इस समय में मांसाहार, मदिरापान, और अन्य तामसिक भोजन का परहेज करना चाहिए। ब्रह्मचर्य का पालन, साधु-संतों की सेवा, और धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन करना चाहिए। भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना विशेष फलदायी मानी जाती है।

चातुर्मास का समय हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र माना जाता है। इस दौरान ईश्वर की आराधना और आत्मचिंतन करने से जीवन में सकारात्मक बदलाव आते हैं। मांगलिक कार्यों पर रोक लगाकर हम भगवान विष्णु की योगनिद्रा का सम्मान करते हैं और उनके जागरण के बाद शुभ कार्यों की शुरुआत करते हैं। इस प्रकार, चातुर्मास का पालन करके हम धार्मिक और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त कर सकते हैं।

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